Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 2 :Jeevadravyana Sambadhama Nav Adhikaronu Sankshep Kathan.

< Previous Page   Next Page >


Page 8 of 272
PDF/HTML Page 20 of 284

 

background image
गुणाधारपरमात्मादिस्वभावोऽभिधेयो वाच्यः प्रतिपाद्यः इत्यभिधानाभिधेयस्वरूपं बोधव्यम्
प्रयोजनं तु व्यवहारेण षड्द्रव्यादिपरिज्ञानम्, निश्चयेन निजनिरञ्जनशुद्धात्मसंवित्तिसमुत्पन्न-
निर्विकारपरमानन्दैकलक्षणसुखामृतरसास्वादरूपं स्वसंवेदनज्ञानम्
परमनिश्चयेन पुनस्तत्फल-
रूपा केवलज्ञानाद्यनन्तगुणाविनाभूता निजात्मोपादानसिद्धानन्तसुखावाप्तिरिति एवं
नमस्कारगाथा व्याख्याता
अथ नमस्कारगाथायां प्रथमं यदुक्तं जीवद्रव्यं तत्सम्बन्धे नवाधिकारान् संक्षेपेण
सूचयामीति अभिप्रायं मनसि सम्प्रधार्य कथनसूत्रमिति निरूपयति
जीवो उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो
भोत्ता संसारत्थो सिद्धो सो विस्ससोड्ढगई ।।।।
जीवः उपयोगमयः अमूर्तिः कर्त्ता स्वदेहपरिमाणः
भोक्ता संसारस्थः सिद्धः सः विस्रसा ऊर्ध्वगतिः ।।।।
छ द्रव्यादिनुं परिज्ञान ते आ ग्रन्थनुं प्रयोजन छे; निश्चयथी निज-निरंजन-शुद्धात्मसंवित्तिथी
उत्पन्न निर्विकार परमानंद जेनुं एक लक्षण छे एवा सुखामृतना रसास्वादरूप
स्वसंवेदनज्ञान ते आ ग्रंथनुं प्रयोजन छे. परमनिश्चयथी ते स्वसंवेदनज्ञानना फळरूप,
केवळज्ञानादि अनंतगुण साथे अविनाभावी, निजात्मउपादानसिद्ध अनंत सुखनी प्राप्ति ते
आ ग्रंथनुं प्रयोजन छे.
ए रीते नमस्कार गाथानुं व्याख्यान कर्युं. १.
हवे नमस्कार
गाथामां जे जीवद्रव्य कहेवामां आव्युं ते जीवद्रव्यना संबंधमां हुं नव
अधिकारो संक्षेपथी सूचवीश, एवो अभिप्राय मनमां राखीने (नव अधिकारोनुं) कथन
करनार सूत्रनुं (श्री नेमिचन्द्र सिद्धांतिदेव) निरूपण करे छेः
गाथा
गाथार्थःजे जीवे छे, उपयोगमय छे, अमूर्तिक छे, कर्ता छे, स्वदेहप्रमाण छे,
जीव मयी उपयोग अमूर्त, कर्ता देहमान है पूर्त्त;
भोक्ता संसारी अर सिद्ध, ऊर्ध्वगमन नव कथन प्रसिद्ध. २.
८ ]
बृहद्द्रव्यसंग्रह