Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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व्याख्या‘‘जीवो’’ शुद्धनिश्चयनयेनादिमध्यान्तवर्जितस्वपरप्रकाशकाविनश्वर-
निरुपाधिशुद्धचैतन्यलक्षणनिश्चयप्राणेन यद्यपि जीवति, तथाप्यशुद्धनयेनानादिकर्मबन्ध-
वशादशुद्धद्रव्यभावप्राणैर्जीवतीति जीवः
‘‘उवओगमओ’’ शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन यद्यपि
सकलविमलकेवलज्ञानदर्शनोपयोगमयस्तथाप्यशुद्धनयेन क्षायोपशमिकज्ञानदर्शननिर्वृत्तत्वात्
ज्ञानदर्शनोपयोगमयो भवति
‘‘अमुत्ति’’ यद्यपि व्यवहारेण मूर्त्तकर्म्माधीनत्वेन
स्पर्शरसगन्धवर्णवत्या मूर्त्या सहितत्वान्मूर्त्तस्तथापि परमार्थेनामूर्त्तातीन्द्रियशुद्धबुद्धैक-
स्वभावत्वादमूर्त्तः
‘‘कत्ता’’ यद्यपि भूतार्थनयेन निष्क्रियटङ्कोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावोऽयं
जीवः तथाप्यभूतार्थनयेन मनोवचनकायव्यापारोत्पादककर्मसहितत्वेन शुभाशुभकर्म्म-
कर्तृत्वात् कर्त्ता
‘‘सदेहपरिमाणो’’ यद्यपि निश्चयेन सहजशुद्धलोकाकाशप्रमितासंख्येय-
प्रदेशस्तथापि व्यवहारेणानादिकर्म्मबन्धाधीनत्वेन शरीरनामकर्मोदयजनितोपसंहारविस्तारा-
धीनत्वात् घटादिभाजनस्थप्रदीपवत् स्वदेहपरिमाणः
‘‘भोत्ता’ यद्यपि शुद्धद्रव्यार्थिक-
भोक्ता छे, संसारस्थ छे, सिद्ध छे अने स्वभावथी ऊर्ध्वगमन करनार छे ते जीव छे. २
टीकाः‘‘जीवो’’ आ जीव जोके शुद्धनिश्चयनयथी आदिमध्यअंतरहित,
स्वपरप्रकाशक, अविनाशी, निरुपाधि शुद्ध चैतन्य जेनुं लक्षण (स्वरूप) छे एवा
निश्चयप्राणथी जीवे छे तोपण अशुद्धनयथी अनादिकर्मबंधना वशे अशुद्ध द्रव्यप्राणो अने
भावप्राणोथी जीवे छे, तेथी ते ‘जीव’ छे.
‘‘उवओगमओ’’ शुद्धद्रव्यार्थिकनयथी जोके सकळविमळ (सर्वथा निर्मळ)
केवळज्ञानदर्शनरूप ‘उपयोगमय’ छे तोपण अशुद्धनयथी क्षायोपशमिक ज्ञान अने दर्शनथी
रचायेलो होवाथी ज्ञानदर्शनरूप ‘उपयोगमय’ छे
‘‘अमुत्ति’’ जोके व्यवहारथी मूर्तकर्मने आधीनपणे स्पर्श-रस-गंध-वर्णरूप मूर्तपणा
सहित छे, तेथी ते मूर्त छे तोपण परमार्थे अमूर्तअतीन्द्रियशुद्धबुद्धएक स्वभाववाळो
होवाथी ‘अमूर्त’ छे.
‘‘क त्ता’’ जोके आ जीव भूतार्थनयथी निष्क्रियटंकोत्कीर्णज्ञायकएक स्वभाववाळो
छे तोपण अभूतार्थनयथी मन-वचन-कायाना व्यापारने उत्पन्न करनार कर्म सहित होवाथी,
शुभाशुभकर्मनो कर्ता होवाथी ‘कर्ता’ छे.
‘‘सदेहपरिमाणो’’ जोके निश्चयथी सहजशुद्ध लोकाकाशप्रमाण असंख्यप्रदेशी छे तोपण
व्यवहारथी, अनादि कर्मबंधने आधीनपणे शरीरनामकर्मना उदयथी उत्पन्न संकोच
विस्तारना आधीनपणाने लीधे, घटादि पात्रमां रहेल दीवानी पेठे ‘स्वदेहप्रमाण’ छे.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ९
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