Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 3 : Jeevanu Swaroop.

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कर्मकर्तृस्थापनं सांख्यं प्रति, स्वदेहप्रमितिस्थापनं नैयायिकमीमांसकसांरन्यत्रयं प्रति,
कर्मभोक्तृत्वव्याख्यानं बौद्धं प्रति, संसारस्थव्याख्यानं सदाशिवं प्रति, सिद्धित्वव्याख्यानं
भट्टचार्वाकद्वयं प्रति, ऊर्ध्वगतिस्वभावकथनं मांडलिकग्रन्थकारं प्रति, इति मतार्थो ज्ञातव्यः
आगमार्थः पुनः ‘‘अस्त्यात्मानादिबद्धः’’इत्यादि प्रसिद्ध एव शुद्धनयाश्रितं
जीवस्वरूपमुपादेयम् शेषं च हेयम् इति हेयोपादेयरूपेण भावार्थोऽप्यवबोद्धव्यः एवं
शब्दनयमतागमभावार्थो यथासम्भवं व्याख्यानकाले सर्वत्र ज्ञातव्यः इति
जीवादिनवाधिकारसूचनसूत्रगाथा ।।।।
अतः परं द्वादशगाथाभिर्नवाधिकारान् विवृणोति तत्रादौ जीवस्वरूपं कथयति :
तिक्काले चदुपाणा इंदियबलमाउआणपाणो य
ववहारा सो जीवो णिच्छयणयदो दु चेदणा जस्स ।।।।
छे, जीवना अमूर्तपणानुं स्थापन भट्ट अने चार्वाक ए बे प्रत्ये छे. ‘जीव कर्मनो कर्ता छे’
ए स्थापन सांख्य प्रत्ये छे, ‘जीव स्वदेहप्रमाण छे’ ए स्थापन नैयायिक, मीमांसक अने
सांख्य
ए त्रण प्रत्ये छे, ‘जीव कर्मनो भोक्ता छे’ ए व्याख्यान बौद्ध प्रत्ये छे, जीवना
संसारस्थपणानुं व्याख्यान सदाशिव प्रत्ये छे. जीवना सिद्धत्वनुं व्याख्यान भट्ट अने
चार्वाक
ए बे प्रत्ये छे, जीवना ऊर्ध्वगमनस्वभावनुं व्याख्यान मांडलिक ग्रंथकार प्रत्ये
छे. आ रीते मतार्थ जाणवो.
‘आत्मा अनादिथी बंधायेलो छे’ इत्यादि आगमार्थ तो प्रसिद्ध ज छे.
‘शुद्धनयाश्रित जीवस्वरूप उपादेय छे अने बीजुं बधुं हेय छे’
एम हेय-
उपादेयरूपे भावार्थ पण जाणवो.
आ रीते शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ अने भावार्थ यथासंभव व्याख्यानकाळे
सर्वत्र जाणवा.
आ रीते जीवादि नव अधिकारोनुं सूचन करनारी आ सूत्रगाथा छे. २.
हवे, बार गाथाओ द्वारा नव अधिकारोनुं विवरण करे छे. तेमां प्रथम जीवनुं
स्वरूप कहे छेः
तीन कालमें जीवन जास, इन्द्रिय बल आयुष उच्छास;
च्यारि प्राण व्यवहारैं जीव, निश्चयनय चेतना सदीव. ३.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ११