Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 13 of 272
PDF/HTML Page 25 of 284

 

background image
जीवः एवं ‘‘वच्छरक्खभवसारिच्छ, सग्गणिरयपियराय चुल्लयहंडिय पुण मडउ णव
दिट्ठंता जाय ।।।।’’ इति दोहककथितनवदृष्टान्तैश्चार्वाकमतानुसारिशिष्यसंबोधनार्थं
जीवसिद्धिव्याख्यानेन गाथा गता अथ अध्यात्मभाषया नयलक्षणं कथ्यते सर्वे जीवाः
शुद्धबुद्धैकस्वभावाः इति शुद्धनिश्चयनयलक्षणम् रागादय एव जीवाः
इत्यशुद्धनिश्चयनयलक्षणम् गुणगुणिनोरभेदोऽपि भेदोपचार इति सद्भूतव्यवहारलक्षणम्
भेदेऽपि सत्यभेदोपचार इत्यसद्भूतव्यवहारलक्षणं चेति तथाहिजीवस्य केवलज्ञानादयो गुणा
इत्यनुपचरितसंज्ञशुद्धसद्भूतव्यवहारलक्षणम् जीवस्य मतिज्ञानादयो विभावगुणा
तेथी ‘‘वच्छरक्खभवसारिच्छ सग्गणिरयपियराय चुल्लयहंडिय पुण मडउ णव दिट्ठंता जाय ।।’’
( १. वत्सजन्म लेतां ज वाछरडुं, पूर्वजन्मना संस्कारथी, शीखव्या विना पोतानी मेळे
मातानुं स्तनपान करवा लागे छे. २. अक्षरअक्षरोनुं उच्चारण जीव जाणकारीनी साथे
आवश्यकता प्रमाणे करे छे. जडपदार्थोमां आ विशेषता होती नथी. ३. भवजो आत्मा
एक स्थायी पदार्थ न होय तो जन्ममरण कोनां थाय? ४. सादृश्यआहार, परिग्रह,
भय, मैथुन, हर्ष, विषाद आदि बधा जीवोमां एकसरखां देखाय छे. ५६. स्वर्गनरक
जीव जो स्वतंत्र पदार्थ न होय तो स्वर्गनरकमां जवानुं कोने सिद्ध थशे? ७. पितर
अनेक मनुष्य मरीने भूत वगेरे थाय छे अने पोतानां स्त्री, पुत्रादिने पोताना आगला
भवनी हकीकत जणावे छे. ८.
चूल्हाहंडीजीव जो पृथ्वी, जळ, अग्नि, वायु अने
आकाशए पांच महाभूतमांथी उत्पन्न थतो होय तो दाळ बनावती वखते चूला उपर
मूकेल हांडीमां पांचे महाभूतोनो समागम थवाने लीधे त्यां पण जीव उत्पन्न थवो जोईए;
परंतु एम बनतुं नथी. ९.
मृतक मडदामां पांचे पदार्थो होय छे पण तेमां जीवनां
ज्ञानादि होतां नथी. आ रीते जीव एक जुदो स्वतंत्र पदार्थ सिद्ध थाय छे. )
दोहरामां कहेलां नव द्रष्टान्तो वडे, चार्वाकमतानुसारी शिष्यने समजाववा माटे जीवनी
सिद्धिना व्याख्यानथी आ गाथा पूरी थई.
हवे अध्यात्मभाषाथी नयोनां लक्षण कहे छेः ‘सर्वे जीवो शुद्धबुद्धएक
स्वभाववाळा छे’ ए शुद्धनिश्चयनयनुं लक्षण छे. ‘रागादि ज जीव छे’ ए अशुद्धनिश्चयनयनुं
लक्षण छे. गुण अने गुणी अभेद होवा छतां पण भेदनो उपचार करवो ते
सद्भूतव्यवहारनुं लक्षण छे; अने भेद होवा छतां पण अभेदनो उपचार करवो ए
असद्भूतव्यवहारनुं लक्षण छे. ते आ प्रमाणे
‘जीवने केवळज्ञानादि गुणो छे’ ए
अनुपचरित शुद्ध सद्भूतव्यवहारनुं लक्षण छे. ‘जीवने मतिज्ञानादि विभावगुणो छे’ ए
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ १३