श्रोत्रेन्द्रियावरणनो क्षयोपशम होवाथी पोतपोतानी बहिरंग द्रव्येन्द्रियना आलंबनथी, मूर्त
पदार्थना सत्तासामान्यने विकल्प विना (-निराकारपणे) परोक्षरूपे जे एकदेश देखे छे ते
अचक्षुदर्शन छे.तेवी जे रीते मन-इन्द्रियावरणना क्षयोपशमथी अने सहकारी कारणरूप
आठ पांखडीवाळा कमळना आकाररूप द्रव्यमनना आलंबनथी, मूर्त अने अमूर्त समस्त
वस्तुओना सत्ता सामान्यने विकल्प विना परोक्षरूपे जे देखे छे ते मानस-अचक्षुदर्शन छे.
ते ज आत्मा अवधिदर्शनावरणना क्षयोपशमथी मूर्त वस्तुना सत्तासामान्यने विकल्प विना
जे एकदेश-प्रत्यक्षरूपे देखे छे ते अवधिदर्शन छे. तथा जे सहजशुद्ध छे अने सदा आनंद
जेनुं एक रूप छे एवा परमात्मतत्त्वनी संवित्तिनी प्राप्तिना बळथी, केवळदर्शनावरणनो
क्षय थतां, मूर्त – अमूर्त समस्त वस्तुना सत्तासामान्यने विकल्प विना सकल-प्रत्यक्षरूपे जे
एक समयमां देखे छे ते उपादेयभूत क्षायिक केवळदर्शन जाणवुं. ४.
हवे आठ भेदोवाळा ज्ञानोपयोगनुं प्रतिपादन करे छे
ज्ञान – भेद मति श्रुत अवधिका, भले – बुरेतै है छहैतिका;
मनपर्यय केवल मिलि आठ, है परतक्ष परोक्ष सुपाठ. ५.
श्रोत्रेन्द्रियावरणक्षयोपशमत्वात्स्वकीयस्वकीयबहिरङ्गद्रव्येन्द्रियालम्बनाच्च मुर्त्तं सत्तासामान्यं
विकल्परहितं परोक्षरूपेणैकदेशेन यत्पस्यति तदचक्षुर्दर्शनम् । तथैव च मनइन्द्रिया-
वरणक्षयोपशमात्सहकारिकारणभूताष्टदलपद्माकारद्रव्यमनोऽवलम्बनाच्च मूर्त्तामूर्त्तसमस्तवस्तु-
गतसत्तासामान्यं विकल्परहितं परोक्षरूपेण यत्पश्यति तन्मानसमचक्षुर्दर्शनम् । स एवात्मा
यदवधिदर्शनावरणक्षयोपशमान्मूर्त्तवस्तुगतसत्तासामान्यं निर्विकल्परूपेणैकदेशप्रत्यक्षेण यत्पश्यति
तदवधिदर्शनम् । यत्पुनः सहजशुद्धसदानन्दैकरूपपरमात्मतत्त्वसंवित्तिप्राप्तिबलेन केवल-
दर्शनावरणक्षये सति मूर्त्तामूर्त्तसमस्तवस्तुगतसत्तासामान्यं विकल्परहितं सकलप्रत्यक्ष-
रूपेणैकसमये पश्यति तदुपादेयभूतं क्षायिकं केवलदर्शनं ज्ञातव्यमिति ।।४।।
अथाष्टविकल्पं ज्ञानोपयोगं प्रतिपादयति —
णाणं अट्ठियप्पं मदिसुदिओही अणाणणाणाणि ।
मणपज्जवकेवलमवि पच्चक्खपरोक्खभेयं च ।।५।।
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बृहद् – द्रव्यसंग्रह