Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 6 : Gnan-Darshan Upyogana Vyakhyanano Nay Vibhagathi Upasanhar.

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यदेकदेशप्रत्यक्षेण सविकल्पं जानाति तदवधिज्ञानम् यत्पुनर्मनःपर्ययज्ञानावरण-
क्षयोपशमाद्वीर्यान्तरायक्षयोपशमाच्च स्वकीयमनोऽवलम्बनेन परकीयमनोगतं मूर्त्तमर्थमेकदेश-
प्रत्यक्षेण सविकल्पं जानाति तदीहामतिज्ञानपूर्वकं मनःपर्ययज्ञानम्
तथैव निजशुद्धात्म-
तत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणलक्षणैकाग्रध्यानेन केवलज्ञानावरणादिघातिचतुष्टयक्षये सति
यत्समुत्पद्यते तदेकसमये समस्तद्रव्यक्षेत्रकालभावग्राहकं सर्वप्रकारोपादेयभूतं केवल-
ज्ञानमिति
।।।।
अथ ज्ञानदर्शनोपयोगद्वयव्याख्यानस्य नयविभागेनोपसंहारः कथ्यते
अट्ठ चदु णाणदंसण सामण्णं जीवलक्खणं भणियं
ववहारा सुद्धणया सुद्धं पुण दंसणं णाणं ।।।।
(साकारपणे) जे एकदेश प्रत्यक्ष जाणे छे ते अवधिज्ञान छे.
जे मनःपर्ययज्ञानावरणना क्षयोपशमथी तेमज वीर्यान्तरायना क्षयोपशमथी पोताना
मनना अवलंबन द्वारा बीजाना मनमां रहेल मूर्त पदार्थने विकल्पसहित (साकारपणे)
एकदेशप्रत्यक्ष जाणे छे, ते इहामतिज्ञानपूर्वकनुं मनःपर्ययज्ञान छे.
निज शुद्धात्मतत्त्वनां सम्यक् श्रद्धा - ज्ञान - चारित्र जेनुं लक्षण छे एवा एकाग्रध्यान
वडे केवलज्ञानावरणादि चार घातीकर्मोनो नाश थतां जे उत्पन्न थाय छे ते, एक समयमां
समस्त द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भावने ग्रहण करनारुं, सर्व प्रकारे
*उपादेयभूत केवळज्ञान
छे. ५
हवे, ज्ञान - दर्शन बन्ने उपयोगना व्याख्याननो नयविभागथी उपसंहार करे
छेः
* उपादेय = ग्राह्य; ग्रहण करवा योग्य. उपादेयपणुं मुख्यत्वे बे प्रकारे कहेवामां आवे छेः (१) ज्यां
निज ध्रुव शुद्धात्माज्ञायकस्वभाव आत्माउपादेय कहेवामां आवे, त्यां ते ‘आश्रय करवा योग्य’ तरीके
उपादेय समजवो. (२) ज्यां केवळज्ञान, सिद्धत्व वगेरे पर्यायो उपादेय कहेवामां आवे, त्यां ते पर्यायो
‘प्रगट करवा योग्य’ तरीके उपादेय समजवा. [अहीं ए ख्यालमां राखवुं के सिद्धत्वादि पर्याय ‘ प्रगट
करवा’ नो उपाय निज ध्रुव शुद्धात्मानो ‘आश्रय लेवो’ ते ज छे.]
यह सामान्य जीवका चिह्न, नय व्यवहार बताया गिह्न;
निश्चय शुद्ध ज्ञानदर्शना, लिंग यथारथ जिनवर भनां. ६.
२० ]
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