Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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वर्णाः रसाः पंच गन्धौ द्वौ स्पर्शाः अष्टौ निश्चयात् जीवे
नो सन्ति अमूर्त्तिः ततः व्यवहारात् मूर्त्तिः बन्धतः ।।।।
व्याख्या‘‘वण्ण रस पञ्च गंधा दो फासा अट्ठ णिच्छया जीवे णो संति’’
श्वेतपीतनीलारुणकृष्णसंज्ञाः पञ्च वर्णाः, तिक्तकटुकषायाम्लमधुरसंज्ञाः पञ्च रसाः,
सुगन्धदुर्गन्धसंज्ञौ द्वौ गन्धौ, शीतोष्णस्निग्धरूक्षमृदुकर्कशगुरुलघुसंज्ञा अष्टौ स्पर्शाः,
‘‘णिच्छया’’ शुद्धनिश्चयनयात् शुद्धबुद्धैकस्वभावे शुद्धजीवे न सन्ति
‘‘अमुत्ति तदो’’ ततः
कारणादमूर्त्तः यद्यमूर्तस्तर्हि तस्य कथं कर्मबन्ध इति चेत् ? ‘‘ववहारा मुत्ति’’
अनुपचरितासद्भूतव्यवहारान्मूर्तो यतः तदपि कस्मात् ? ‘‘बंधादो’’ अनन्त-
ज्ञानाद्युपलम्भलक्षणमोक्षविलक्षणादनादिकर्मबन्धनादिति तथा चोक्तम्
कथंचिन्मूर्तामूर्तजीवलक्षणम्‘‘बंधं पडि एयत्तं लक्खणदो हवदि तस्स भिण्णत्तं तम्हा
अमुत्तिभावो णेगंतो होदि जीवस्स ।।।।’’ अयमत्रार्थःयस्यैवामूर्तस्यात्मनः
गाथा
गाथार्थःनिश्चयथी जीवमां पांच वर्ण, पांच रस, बे गंध अने आठ स्पर्श नथी
तेथी जीव अमूर्तिक छे; व्यवहारनयनी अपेक्षाए कर्मबंध होवाथी जीव मूर्तिक छे.
टीकाः‘‘वण्ण रस पञ्च गंधा दो फासा अट्ठ णिच्छया जीवे णो संति’’ श्वेत, पीत,
नील, लाल अने कृष्णए पांच रंग; तीखो, कडवो, कषायलो, खाटो अने मधुर
पांच रस; सुगंध अने दुर्गंधए बे गंध; शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, कोमळ, कठोर,
हलको, भारेए आठ स्पर्श; ‘‘णिच्छया’’ शुद्ध निश्चयनयथी शुद्ध - बुद्ध - एक - स्वभाववाळा
शुद्ध जीवमां नथी. ‘‘अमुत्ति तदो’’ ते कारणे आ जीव अमूर्त छे. जो जीव अमूर्तिक छे,
तो तेने कर्मबंध केवी रीते थाय छे? ‘‘ववहारा मुत्ति’’ कारण के जीव अनुपचरित असद्भूत
व्यवहारनयथी मूर्त छे, तेथी (कर्मबंध थाय छे). जीव मूर्त क्या कारणे छे? ‘‘बंधादो’’ अनंत
ज्ञानादिनी उपलब्धि जेनुं लक्षण छे एवा मोक्षथी विलक्षण अनादि कर्मबंधनने कारणे जीव
मूर्त छे. वळी अन्यत्र जीवनुं लक्षण कथंचित् मूर्त अने कथंचित् अमूर्त कह्युं छे; ते आ
प्रमाणेः
‘‘कर्मबंध प्रति जीवनी एकता छे अने लक्षणथी तेनी भिन्नता छे; तेथी एकांते
जीवने अमूर्तिकपणुं नथी.’’
१. श्री सर्वार्थसिद्धि २/७ टीका.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ २३