Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पञ्चमहाव्रतेषु वर्त्तेते यदा तदा दुःस्वप्नादिव्यक्ताव्यक्तप्रमादसहितोऽपि षष्ठगुणस्थानवर्त्ती
प्रमत्तसंयतो भवति
स एव जलरेखादिसदृशसंज्वलनकषायमन्दोदये सति निष्प्रमदा-
शुद्धात्मसंवित्तिमलजनकव्यक्ताव्यक्तप्रमादरहितः सन्सप्तमगुणस्थानवर्ती अप्रमत्तसंयतो
भवति
स एवातीतसंज्वलनकषायमन्दोदये सत्यपूर्वपरमाह्लादैकसुखानुभूतिलक्षणा-
पूर्वकरणोपशमकक्षपकसंज्ञोऽष्टमगुणस्थानवर्ती भवति दृष्टश्रुतानुभूतभोगाकांक्षादिरूप-
समस्तसंङ्कल्पविकल्परहितनिजनिश्चलपरमात्मतत्त्वैकाग्रध्यानपरिणामेन कृत्वा येषां
जीवानामेकसमये ये परस्परं पृथक्कर्तुं नायान्ति ते वर्णसंस्थानादिभेदेऽप्यनिवृत्ति-
करणौपशमिकक्षपकसंज्ञा द्वितीयकषायाद्येकविंशतिभेदभिन्नचारित्रमोहप्रकृतिनामुपशमन-
क्षपणसमर्था नवमगुणस्थानवर्तिनो भवन्ति
सूक्ष्मपरमात्मतत्त्वभावनाबलेन सूक्ष्म-
कृष्टिगतलोभकषायस्योपशमकाः क्षपकाश्च दशमगुणस्थानवर्तिनो भवन्ति १०
परमोपशममूर्तिनिजात्मस्वभावसंवित्तिबलेन सकलोपशान्तमोहा एकादशगुणस्थानवर्तिनो
भवन्ति
११ उपशमश्रेणिविलक्षणेन क्षपकश्रेणिमार्गेण निष्कषायशुद्धात्मभावनाबलेन
परिग्रहनी संपूर्णपणे निवृत्ति जेमनुं लक्षण छे तेमांवर्ते छे त्यारे, दुःस्वप्न आदि व्यक्त
अने अव्यक्त प्रमादसहित होवा छतां पण, ते छठ्ठा गुणस्थानवर्ती ‘प्रमत्तसंयत’ छे. ६.
ते ज जीव जळनी रेखा समान संज्वलन कषायनो मंद उदय होतां प्रमादरहित
शुद्धात्मानुभवमां दोष उत्पन्न करनार व्यक्त अने अव्यक्त प्रमादरहित वर्ततो थको सातमा
गुणस्थानवर्ती ‘अप्रमत्तसंयत’ छे. ७. ते ज (जीव) संज्वलन कषायनो अत्यंत मंद उदय
होतां अपूर्व (परम
आह्लादरूप एक सुखनी अनुभूति जेनुं लक्षण छे एवा) ‘अपूर्वकरण
- उपशमक के क्षपक’ नामना आठमा गुणस्थानवर्ती छे. ८. द्रष्ट, श्रुत अने अनुभूत
भोगाकांक्षादिरूप समस्त संकल्पविकल्परहित, निज निश्चल परमात्मस्वरूपमां एकाग्र
ध्यानना परिणामनी अपेक्षाए जे जीवोने एक समयमां परस्पर अंतर होतुं नथी तेओ,
वर्ण अने संस्थान आदिनो भेद होवा छतां, ‘अनिवृत्तिकरण
उपशमक के क्षपक’ संज्ञाना
धारक, अप्रत्याख्यानावरणरूप द्वितीय कषायादि एकवीस प्रकारनी चारित्रमोहनीय कर्मनी
प्रकृतिओना उपशम के क्षयमां समर्थ एवा, नवमा गुणस्थानवर्ती जीव छे. ९. सूक्ष्म
परमात्मतत्त्वनी भावनाना बळथी, सूक्ष्म
अत्यंत कृश थयेल लोभकषायनो उपशम के क्षय
करनारा जीवो दशमा गुणस्थानवर्ती छे. १०. परमउपशममूर्ति निजात्माना स्वभावना
अनुभवना बळथी संपूर्ण मोहनो उपशम करनार (जीवो) अगियारमा गुणस्थानवर्ती छे.
११. उपशमश्रेणीथी विलक्षण एवा क्षपकश्रेणीना मार्गे निष्कषाय शुद्धात्मानी भावनाना
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ४१
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