दर्शनावरणान्तरायत्रयं युगपदेकसमयेन निर्मूल्य मेघपुञ्जरविनिर्गतदिनकर इव सकल-
विमलकेवलज्ञानकिरणैर्लोकालोकप्रकाशकास्त्रयोदशगुणस्थानवर्तिनो जिनभास्करा भवन्ति
वर्तिनोऽयोगिजिना भवन्ति
गुणान्तर्भूतनिर्नामनिर्गोत्राद्यनन्तगुणाः सिद्धा भवन्ति
अंतर्मुहूर्त काळपर्यंत, स्वशुद्धात्मसंवित्ति (संवेदन) जेनुं लक्षण छे एवा ‘एकत्ववितर्क
अवीचार’ नामना द्वितीय शुक्लध्यानमां स्थिर थईने, तेना छेल्ला समयमां ज्ञानावरण,
दर्शनावरण अने अंतराय ए त्रणेनो एक साथे एक समयमां नाश करीने, मेघपटलमांथी
नीकळेला सूर्यनी जेम सकळनिर्मळ केवळज्ञाननां किरणोथी लोक अने अलोकने प्रकाशित
करनारा, तेरमा गुणस्थानवर्ती जिन भास्कर छे. १३. मन, वचन, कायानी वर्गणानुं जेने
आलंबन छे अने कर्मोने ग्रहण करवामां जे निमित्त छे, एवा आत्मप्रदेशोना
परिस्पंदनस्वरूप जे योग, तेनाथी रहित, चौदमा गुणस्थानवर्ती अयोगी जिन छे. १४.
अने त्यारपछी निश्चयरत्नत्रयात्मक ‘कारणभूत समयसार’ नामनुं जे परम यथाख्यातचारित्र
छे, तेना वडे पूर्वोक्त चौद गुणस्थानथी अतीत थयेला, ज्ञानावरणादि आठ कर्मोथी रहित
थयेला तथा सम्यक्त्वादि आठ गुणोमां अंतर्भूत, निर्नाम, निर्गोत्र आदि अनंतगुणवाळा,
‘सिद्धो’ छे.
बे गुणस्थाननो काळ रहेतो नथी. ए शंकानो उत्तर आपे छेः