Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 13 : Margnaonu Kathan.

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चारित्रमोहोदयाभावेऽपि सयोगिकेवलिनां निष्क्रियशुद्धात्माचरणविलक्षणो योगत्रय-
व्यापारश्चारित्रमलं जनयति, योगत्रयगते पुनरयोगिजिने चरमसमयं विहाय शेषाघाति-
कर्मतीव्रोदयश्चारित्रमलं जनयति, चरमसमये तु मन्दोदये सति चारित्रमलाभावात् मोक्षं
गच्छति
इति चतुर्दशगुणस्थानव्याख्यानं गतम् इदानीं मार्गणाः कथ्यन्ते ‘‘गइ इंदियेसु
काये जोगे वेदे कसायणाणे य संयम दंसण लेस्सा भविया समत्तसण्णि आहारे ’’ इति
गाथाकथितक्रमेण गत्यादिचतुर्दशमार्गणा ज्ञातव्याः तद्यथास्वात्मोपलब्धिसिद्धिविलक्षणा
नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवगतिभेदेन चतुर्विधा गतिमार्गणा भवति अतीन्द्रियशुद्धात्म-
तत्त्वप्रतिपक्षभूताह्येकद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियभेदेन पञ्चप्रकारेन्द्रियमार्गणा अशरीरात्म-
तत्त्वविसदृशी पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसकायभेदेन षड्भेदा कायमार्गणा
निर्व्यापारशुद्धात्मपदार्थविलक्षणमनोवचनकाययोगभेदेन त्रिधा योगमार्गणा, अथवा विस्तरेण
पण तेने चोरना संसर्गनो दोष लागे छे, तेम सयोग केवळीओने चारित्रनो नाश करनार
चारित्रमोहना उदयनो अभाव होवा छतां निष्क्रिय शुद्धात्म
आचरणथी विलक्षण त्रण
योगनो व्यापार चारित्रमां दोष उत्पन्न करे छे; तथा त्रण योगनो जेमने अभाव छे ते
अयोगी जिनने, चरम समय सिवाय, बाकी रहेलां चार अघातीकर्मोनो तीव्र उदय चारित्रमां
दोष उत्पन्न करे छे. चरम समये मंद उदय होतां, चारित्रमां दोषनो अभाव थवाथी, ते
मोक्षने पामे छे.
ए रीते चौद गुणस्थानोनुं व्याख्यान समाप्त थयुं.
हवे मार्गणाओनुं कथन करवामां आवे छेः
‘‘गइ इंदियेसु काये जोगे वेदे कसायणाणे
संयम दंसण लेस्सा भविया सम्मत्तसण्णि आहारे ।। (गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय,
ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञा अने आहार)’’ ए रीते गाथामां
कहेला क्रम प्रमाणे गति आदि चौद मार्गणा जाणवी. ते आ प्रमाणेःनिज आत्मानी
उपलब्धिरूप सिद्धिथी विलक्षण एवी गतिमार्गणा नारक, तिर्यंच, मनुष्य अने देवगतिना
भेदथी चार प्रकारनी छे. १. अतीन्द्रिय शुद्धात्मतत्त्वथी प्रतिपक्षभूत इन्द्रियमार्गणा
एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय अने पंचेन्द्रियना भेदथी पांच प्रकारनी छे. २.
अशरीरी आत्मतत्त्वथी विसद्रश एवी कायमार्गणा पृथ्वी, जळ, तेज, वायु, वनस्पति अने
त्रसकायना भेदथी छ प्रकारनी छे. ३. निर्व्यापार शुद्धात्मपदार्थथी विलक्षण मन, वचन अने
काययोगना भेदथी योगमार्गणा त्रण प्रकारनी छे; अथवा विस्तारथी सत्य, असत्य, उभय
१. गोम्मटसार जीवकांड गाथा १४१
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ४३