वैक्रियिकवैक्रियिकमिश्राहारकाहारकमिश्रकार्मणकायभेदेन सप्तविधो काययोगश्चेति समुदायेन
पञ्चदशविधा वा योगमार्गणा
वा
संयमासंयमस्तथैवासंयमश्चेति प्रतिपक्षद्वयेन सह सप्तप्रकारा संयममार्गणा
अने अनुभय एम) चार प्रकारना वचनयोग छे, औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक,
वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र अने कार्मण
रागादिदोष रहित परमात्मद्रव्यथी भिन्न एवी वेदमार्गणा स्त्री, पुरुष अने नपुंसकवेदना
भेदथी त्रण प्रकारनी छे. ५. निष्कषाय शुद्धात्मस्वभावथी प्रतिकूळ क्रोध, मान, माया अने
लोभना भेदथी चार प्रकारनी कषायमार्गणा छे; विस्तारथी कषाय अने नोकषायना भेदथी
पच्चीस प्रकारनी कषायमार्गणा छे. ६. मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय अने केवळज्ञान तथा
कुमति, कुश्रुत अने कुअवधि
प्रकारनुं तथा संयमासंयम अने असंयम ए बे प्रतिपक्षरूप भेद मळीने सात प्रकारनी
संयममार्गणा छे. ८. चक्षु, अचक्षु, अवधि अने केवळदर्शनना भेदथी चार प्रकारनी
दर्शनमार्गणा छे. ९. कषायोदयरंजित योगप्रवृत्तिथी विसद्रश (कषायना उदयथी रंजित
योगनी प्रवृत्तिथी विपरीत) एवा परमात्मद्रव्यनो विरोध करनारी लेश्यामार्गणा कृष्ण, नील,
कापोत, तेजो, पद्म अने शुक्ललेश्याना भेदथी छ प्रकारनी छे. १०. भव्य अने अभव्यना
भेदथी बे प्रकारनी भव्यमार्गणा छे. ११.