Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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हेतुचतुष्टयेन तथैवाविद्धकुलालचक्रवद् व्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्चेति
दृष्टान्तचतुष्टयेन च स्वभावोर्द्धगमनं ज्ञातव्यं, तच्च लोकाग्रपर्यन्तमेव, न च परतो
धर्मास्तिकायाभावादिति
‘नित्या’ इति विशेषणं तु, मुक्तात्मनां कल्पशतप्रमितकाले गते
जगति शून्ये जाते सति पुनरागमनं भवतीति सदाशिववादिनो वदन्ति, तन्निषेधार्थं विज्ञेयम्
‘उत्पादव्ययसंयुक्तत्वं’, विशेषणं, सर्वथैवापरिणामित्वनिषेधार्थमिति किञ्च विशेषः
निश्चलाविनश्वरशुद्धात्मस्वरूपाद्भिन्नं सिद्धानां नारकादिगतिषु भ्रमणं नास्ति
कथमुत्पादव्ययत्वमिति ? तत्र परिहारः
आगमकथितागुरुलघुषट्स्थानपतितहानिवृद्धिरूपेण
येऽर्थपर्यायास्तदपेक्षया अथवा येन येनोत्पादव्ययध्रौव्यरूपेण प्रतिक्षणं ज्ञेयपदार्थाः परिणमन्ति
तत्परिच्छित्त्याकारेणानीहितवृत्त्या सिद्धज्ञानामपि परिणमति तेन कारणेनोत्पादव्ययत्वम्, अथवा
व्यञ्जनपर्यायापेक्षया संसारपर्यायविनाशः सिद्धपर्यायोत्पादः, शुद्धजीवद्रव्यत्वेन ध्रौव्यमिति
एवं
हेतुओ द्वारा, तेमज कुंभारना घूमता चाकनी जेम, जेनो माटीनो लेप दूर थयो होय एवा
तुंबडानी जेम, एरंडना बीजनी जेम अने अग्निनी शिखानी जेम
आ चार द्रष्टांतो द्वारा,
जीवने ‘स्वभावथी ज ऊर्ध्वगमन जाणवुं,’ अने ते (ऊर्ध्वगमन) लोकना अग्रभाग सुधी
ज थाय छे एथी आगळ थतुं नथी, केमके धर्मास्तिकायनो (आगळ) अभाव छे.
‘सिद्ध भगवान नित्य छे’ एम जे ‘नित्य’ विशेषण छे ते, सदाशिववादी एम कहे
छे के ‘कल्पप्रमाण समय वीत्ये ज्यारे जगत शून्य थई जाय छे त्यारे मुक्त जीवोनुं संसारमां
पुनरागमन थाय छे, तेनो निषेध करवा माटे छे, एम जाणवुं.
सिद्ध भगवाननुं एक विशेषण ‘उत्पादव्ययसंयुक्तपणुं’ एवुं छे, ते सर्वथा
अपरिणामीपणानो निषेध करवा माटे छे.
वळी अहीं विशेष समजाववामां आवे छेःनिश्चळ अविनश्वर शुद्धात्मस्वरूपथी
भिन्न नारकादि गतिमां सिद्धोने भ्रमण होतुं नथी, तो सिद्धोमां उत्पाद - व्यय केवी रीते
होय? तेनुं समाधानः(१) आगममां कह्या प्रमाणे अगुरुलघुगुणना षट्स्थानपतित
हानि - वृद्धिरूपे जे अर्थपर्यायो छे ते अपेक्षाए (सिद्ध भगवानने उत्पाद - व्यय घटे छे),
अथवा (२) ज्ञेय पदार्थो पोताना जे जे उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यरूपे प्रति समय परिणमे छे तेनी
ज्ञप्तिना आकारे अनीहितवृत्तिए (विना इच्छाए) सिद्धनुं ज्ञान पण परिणमे छे ते कारणे
सिद्ध भगवानने उत्पाद
- व्यय घटे छे, अथवा (३) व्यंजन पर्यायनी अपेक्षाए सिद्धोने
संसार पर्यायनो विनाश, सिद्धपर्यायनो उत्पाद अने शुद्ध जीवद्रव्यपणे ध्रौव्य छे.
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बृहद्द्रव्यसंग्रह