Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 15 : Heyaroop Ajeevadravyana Kathanani Sharooat Tatha Bhed.

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उपादेयभूतस्यानन्तसुखसाधकत्वादन्तरात्मोपादेयः, परमात्मा पुनः साक्षादुपादेय इत्यभिप्रायः
एवं षड्द्रव्यपञ्चास्तिकायप्रतिपादकप्रथमाधिकारमध्ये नमस्कारादिचतुर्दशगाथाभिर्नवभिरन्तर-
स्थलैर्जीवद्रव्यकथनरूपेण प्रथमोऽन्तराधिकारः समाप्तः
।।१४।।
अतः परं यद्यपि शुद्धबुद्धैकस्वभावं परमात्मद्रव्यमुपादेयं भवति तथापि
हेयरूपस्याजीवद्रव्यस्य गाथाष्टकेन व्याख्यानं करोति कस्मादिति चेत् ? हेयतत्त्वपरिज्ञाने सति
पञ्चादुपादेयस्वीकारो भवतीति हेतोः तद्यथा
अज्जीवो पुण णेओ पुग्गलधम्मो अधम्म आयासं
कालो पुग्गल मुत्तो रूवादिगुणो अमुत्ति सेसा दु (हु) ।।१५।।
अजीवः पुनः ज्ञेयः पुद्गलः धर्मः अधर्मः आकाशम्
कालः पुद्गलः मूर्त्तः रूपादिगुणः अमूर्त्ताः शेषाः तु ।।१५।।
उपादेय छे अने परमात्मा तो साक्षात् उपादेय छेएवो अभिप्राय छे.
आ रीते षड्द्रव्यपंचास्तिकायना प्रतिपादक प्रथम अधिकारमां नमस्कारगाथादि चौद
गाथा द्वारा नव अंतरस्थळ वडे जीवद्रव्यना कथनरूपे प्रथम अंतराधिकार पूरो थयो. १४.
हवे पछी, जोके शुद्ध-बुद्धएकस्वभाव जेनो छे तेवुं परमात्मद्रव्य उपादेय छे. तोपण
हेयरूप अजीवद्रव्यनुं आठ गाथा वडे व्याख्यान करे छे. शा माटे? पहेलां हेय तत्त्वनुं परिज्ञान
थतां पछी उपादेय तत्त्वनो स्वीकार थाय छे ते कारणे. ते व्याख्यान आ प्रमाणे छेः
गाथा १५
गाथार्थःपुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश अने काळए अजीव द्रव्य जाणवां,
रूपादि गुणनुं धारक पुद्गल मूर्त द्रव्य छे अने बाकीनां (चार) अमूर्त छे.
१. आ प्रगट करवा योग्य तरीके उपादेय छे. ते पर्याय होवाथी आश्रय करवा योग्य नथी. आश्रय करवा योग्य
तो सदा निज त्रिकाळ ध्रुव शुद्धात्मा ज छे. जुओ गाथा १५ नी भूमिका तथा नियमसार गाथा ५०.
२. आ आश्रय करवा योग्य तरीके सदा उपादेय छे.
३. तेनो आश्रय छोडवा योग्य होवाथी हेय छे.
अब अजीवकौ सुनौ विलास, पुद्गल धर्म अधर्म अकास;
काल, तहां मूरत पुद्गला, रूपादिक युत, शेष न रला. १५.
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