Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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निश्चयेन पुनः पुद्गलस्वरूप एवेति बन्धः कथ्यतेमृत्पिण्डादिरूपेण योऽसौ बहुधा बंधः
स केवलः पुद्गलबंधः, यस्तु कर्मनोकर्मरूपः स जीवपुद्गलसंयोगबंधः किञ्च विशेष :
कर्मबंधपृथग्भूतस्वशुद्धात्मभावनारहितजीवस्यानुपचरितासद्भूतव्यवहारेण द्रव्यबंधः, तथैवा-
शुद्धनिश्चयेन योऽसौ रागादिरूपो भावबंधः कथ्यते सोऽपि शुद्धनिश्चयनयेन पुद्गलबंध एव
बिल्वाद्यपेक्षया बदरादीनां सूक्ष्मत्वं, परमाणोः साक्षादिति; बदराद्यपेक्षया बिल्वादीनां स्थूलत्वं,
जगद्व्यापिनि महास्कन्धे सर्वोत्कृष्टमिति
समचतुरस्रन्यग्रोधसातिककुब्जवामन-
हुण्डभेदेनषट्प्रकारसंस्थानं यद्यपि व्यवहारनयेन जीवस्यास्ति तथाप्यसंस्थानाच्चिच्यमत्कार-
परिणतेर्भिन्नत्वान्निश्चयेन पुद्गलसंस्थानमेव; यद्यपि जीवादन्यत्र वृत्तत्रिकोणचतुष्कोणादि-
व्यक्ताव्यक्तरूपं बहुधा संस्थानं तदपि पुद्गल एव
गोधूमादिचूर्णरूपेण घृतखण्डादिरूपेण
बहुधा भेदो ज्ञातव्यः दृष्टिप्रतिबन्धकोऽन्धकारस्तम इति भण्यते वृक्षाद्याश्रयरूपा
ते शब्द पुद्गलस्वरूप ज छे.
हवे, बंधनुं कथन करवामां आवे छेःमाटीना पिंडादिरूपे जे आ अनेक प्रकारनो
बंध छे ते तो केवळ पुद्गलबंध ज छे अने जे कर्मनोकर्मरूप बंध छे ते जीव अने
पुद्गलना संयोगरूप बंध छे. वळी विशेषःकर्मबंधथी पृथग्भूत स्वशुद्धात्मानी
भावनाथी रहित जीवने अनुपचरित असद्भूत व्यवहारथी द्रव्यबंध कहेवाय छे, तेम ज
अशुद्धनिश्चयनयथी जे आ रागादिरूप भावबंध कहेवाय छे, ते पण शुद्धनिश्चयनयथी
पुद्गलबंध ज छे.
बिल्वफळ वगेरेनी अपेक्षाए बोर वगेरेनुं सूक्ष्मपणुं छे अने परमाणुने साक्षात्
सूक्ष्मपणुं छे. बोर वगेरेनी अपेक्षाए बिल्व वगेरेनुं स्थूळपणुं छे अने त्रण लोकमां व्याप्त
महास्कंधने विषे सौथी अधिक स्थूळता छे.
समचतुरस्र, न्यग्रोध, सातिक, कुब्जक, वामन अने हुंडकना भेदथी छ प्रकारनां
संस्थान जोके व्यवहारनयथी जीवने छे, तोपण संस्थानरहित चैतन्यचमत्कारनी परिणतिथी
भिन्न होवाथी निश्चयनयथी ते संस्थान पुद्गलनां ज छे. जीवथी भिन्न जे कोई गोळ,
त्रिकोण, चतुष्कोण आदि व्यक्त
- अव्यक्तरूप अनेक प्रकारनां संस्थान छे ते पण पुद्गल ज
छे. घउं वगेरेना चूर्णरूप तथा घी, खांड आदिरूप अनेक प्रकारना (संस्थान) भेद जाणवा.
द्रष्टिने रोकनार अंधकारने ‘तम’ कहेवामां आवे छे.
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