Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Chha Dravyonu Chhoolikaroope Vishesha Vyakhyan.

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चूलिका
अतः परं पूर्वोक्तषड्द्रव्याणां चूलिकारूपेण विस्तरव्याख्यानं क्रियते तद्यथा
परिणामि जीवमुत्तं, सपदेसं एयखेत्तकिरिया य
णिच्चं कारण कत्ता, सव्वगदमिदरंहि यपवेसे ।।।।
दुण्णि य एयं एयं, पंच त्तिय एय दुण्णि चउरो य
पंच य एयं एयं, एदेसं एय उत्तरं णेयं ।।।। (युग्मम्)
व्याख्या‘‘परिणामि’’ इत्यादिव्याख्यानं क्रियते ‘‘परिणामि’’ परिणामिनौ
जीवपुद्गलौ स्वभावविभावपरिणामाभ्यां कृत्वा, शेष चत्वारि द्रव्याणि
विभावव्यञ्जनपर्यायाभावान्मुख्यवृत्त्या पुनरपरिणामीनिति
‘‘जीव’’ शुद्धनिश्चयनयेन
विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावं शुद्धचैतन्यं प्राणशब्देनोच्यते तेन जीवतीति जीवः व्यवहारनयेन पुनः
हवे, पछी पूर्वोक्त छ द्रव्योनुं चूलिकारूपे (उपसंहार तरीके) विशेष व्याख्यान करे
छेः
चूलिका
गाथार्थःछ द्रव्योमां जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य परिणामी छे, चेतनद्रव्य
एक जीव छे, मूर्तिक एक पुद्गल छे, प्रदेशसहित जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा
आकाश
ए पांच द्रव्यो छे, एक एक संख्यावाळा धर्म, अधर्म अने आकाशए त्रण
द्रव्यो छे, क्षेत्रवान एक आकाश द्रव्य छे, क्रियासहित जीव अने पुद्गलए बे द्रव्य छे,
नित्यद्रव्य धर्म, अधर्म, आकाश अने काळए चार छे, कारणद्रव्य पुद्गल, धर्म, अधर्म,
आकाश अने काळए पांच छे, कर्ता एक जीवद्रव्य छे, सर्वव्यापक द्रव्य एक आकाश
छे, (एक क्षेत्रावगाह होवा छतां पण) आ छये द्रव्योने परस्पर प्रवेश नथी. ए रीते छये
मूळ द्रव्योना उत्तरगुण जाणवा.
टीकाः‘‘परिणामि’’ स्वभाव तथा विभाव परिणामोथी जीव अने पुद्गल
ए बे द्रव्यो परिणामी छे. बाकीनां चार द्रव्यो विभावव्यंजनपर्यायना अभावनी मुख्यताथी
अपरिणामी छे.
‘‘जीव’’ शुद्धनिश्चयनयथी विशुद्ध ज्ञानदर्शनस्वभावी शुद्धचैतन्यने ‘प्राण’ शब्दथी
कहेवामां आवे छे; ते शुद्धचैतन्यरूप प्राणथी जे जीवे छे ते जीव छे. व्यवहारनयथी
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ८५