Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कर्मोदयजनितद्रव्यभावरूपैश्चतुर्भिः प्राणैर्जीवति, जीविष्यति, जीवितपूर्वो वा जीवः
पुद्गलादिपञ्चद्रव्याणि पुनरजीवरूपाणि ‘‘मुत्तं’’ अमूर्त शुद्धात्मनो
विलक्षणस्पर्शरसगन्धवर्णवती मूर्त्तिरुच्यते, तत्सद्भावान्मूर्त्तः पुद्गलः जीवद्रव्यं
पुनरनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण मूर्त्तमपि, शुद्धनिश्चयनयेनामूर्त्तम्, धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि
चामूर्त्तानि
‘‘सपदेसं’’ लोकमात्रप्रमितासंख्येयप्रदेशलक्षणं जीवद्रव्यमादिं कृत्वा पञ्चद्रव्याणि
पञ्चास्तिकायसंज्ञानि सप्रदेशानि कालद्रव्यं पुनर्बहुप्रदेशत्वलक्षणकायत्वाभावादप्रदेशम्
‘‘एय’’ द्रव्यार्थिकनयेन धर्माधर्माकाशद्रव्याण्येकानि भवन्ति जीवपुद्गलकालद्रव्याणि
पुनरनेकानि भवन्ति ‘‘खेत्त’’ सर्वद्रव्याणामवकाशदानसामर्थ्यात् क्षेत्रमाकाशमेकम्
शेषपञ्चद्रव्याण्यक्षेत्राणि ‘‘किरियाय’’ क्षेत्रात्क्षेत्रान्तरगमनरूपा परिस्पन्दवती चलनवती क्रिया
सा विद्यते ययोस्तौ क्रियावन्तौ जीवपुद्गलौ धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि पुनर्निष्क्रियाणि
‘‘णिच्चं’’ धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि यद्यप्यर्थपर्यायत्वेनानित्यानि, तथापि मुख्यवृत्त्या
कर्मोदयजनित द्रव्य अने भावरूप चार प्रकारना (इन्द्रिय, बळ, आयु, श्वासोच्छ्वास)
प्राणोथी जे जीवे छे, जीवशे अने पूर्वे जीवतो हतो ते जीव छे. पुद्गल आदि पांच द्रव्यो
अजीवरूप छे.
‘‘मुत्तं’’ अमूर्त शुद्धात्माथी विलक्षण स्पर्श, रस, गंध अने वर्णरूप मूर्ति कहेवाय
छे, तेना सद्भावथी पुद्गल मूर्त छे. जीवद्रव्य अनुपचरित असद्भूत व्यवहारथी मूर्त छे;
पण शुद्ध निश्चयनयथी अमूर्त छे. धर्म, अधर्म, आकाश अने काळद्रव्यो अमूर्त छे.
‘‘सपदेसं’’ लोकमात्रप्रमाण असंख्य प्रदेशवाळा जीवद्रव्यथी मांडीने पांच द्रव्यो (जीव,
पुद्गल, धर्म, अधर्म अने आकाश) ‘पंचास्तिकाय’ संज्ञावाळां सप्रदेश छे. काळद्रव्यने
बहुप्रदेश जेनुं लक्षण छे, एवा कायत्वनो अभाव होवाथी ते अप्रदेश छे.
‘‘एय’’ द्रव्यार्थिकनयथी धर्म, अधर्म अने आकाशद्रव्य एक एक छे. जीव, पुद्गल,
काळद्रव्य अनेक छे. ‘‘खेत्त’’ सर्व द्रव्योने अवकाश आपवानुं सामर्थ्य होवाथी क्षेत्र एक
आकाशद्रव्य छे, बाकीनां पांच द्रव्य अक्षेत्र छे.
‘‘किरिया य’’ एकक्षेत्रथी बीजा क्षेत्रे गमन करवारूप परिस्पंदरूप अथवा
चालवारूप क्रिया जेमनामां छे, ते क्रियावान जीव अने पुद्गलए बे द्रव्यो छे. धर्म,
अधर्म, आकाश अने काळ ए चार द्रव्यो निष्क्रिय छे. ‘‘णिच्चं’’ धर्म, अधर्म, आकाश
अने काळद्रव्य जोके अर्थपर्यायवाळां होवानी अपेक्षाए अनित्य छे, तोपण मुख्यपणे
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