भावार्थः — जे विवेकी, २५ दोषरहित अने अंगरूप ८
गुणसहित सम्यग्दर्शन धारण करे छे तेने अप्रत्याख्यानावरणीय
कषायना तीव्र उदयमां जोडावाथी जोके संयमभाव लेशमात्र पण
होतो नथी तोपण इन्द्र वगेरे तेनी पूजा (आदर) करे छे. जेवी
रीते पाणीमां रहेवा छतां कमळ पाणीथी अलिप्त रहे छे तेवी
रीते सम्यग्द्रष्टि घरमां रहे छे तोपण गृहस्थपणामां लेपाई जतो
नथी, निर्मोह (उदासी) रहे छे. जेवी रीते वेश्यानो१ प्रेम फक्त
पैसामां ज होय छे, मनुष्य उपर होतो नथी तेवी रीते ते
सम्यग्द्रष्टिनो प्रेम सम्यक्त्वमां ज होय छे पण गृहस्थपणामां
होतो नथी. वळी जेवी रीते सोनुं कादवमां पड्युं रहे छे छतां
निर्मळ अने जुदुं ज रहे छे तेवी रीते सम्यग्द्रष्टि जीव जोके
गृहस्थदशामां रहे छे तोपण तेमां राचतो नथी, कारण के ते एने
त्याज्य२ (छोडवायोग्य) माने छे.३
सम्यक्त्वनो महिमा, सम्यग्द्रष्टिना अनुत्पत्तिस्थान तथा
सर्वोत्तम सुख अने सर्वधार्मनुं मूळ
प्रथम नरक विन षट् भू ज्योतिष वान भवन षंढ नारी,
थावर विकलत्रय पशुमें नहि, उपजत सम्यक्धारी;
८६ ][ छ ढाळा
१अहीं वेश्याना प्रेम साथे फक्त अलिप्तता मात्रनी सरखामणी छे.
२ विषयासक्तः अपि सदा सर्वारम्भेषु वर्तमानः अपि ।
मोहविलासः एषः इति सर्वं मन्यते हेयं ।।३१४।।
(स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा)
३रोगीने औषधिसेवन अने केदीने कारागृह, ए पण आना द्रष्टांत छे.