Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 17 (Dhal 3).

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भावार्थसम्यग्द्रष्टि जीव आयु पूर्ण थतां ज्यारे मरे छे
त्यारे बीजाथी सातमी नरकना नारकी, ज्योतिषी, व्यंतर,
भवनवासी, नपुंसक, सर्व प्रकारनी स्त्री, एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय,
त्रणइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, अने कर्मभूमिना पशु थता नथी; (नीच
फळवाळा, ओछा अंगवाळा, अल्पायुवाळा अने दरिद्री थता
नथी;) विमानवासी देव, भोगभूमिना मनुष्य अथवा तिर्यंच ज
थाय छे. कर्मभूमिना तिर्यंच पण थतां नथी. कदाच नरकमां
* जाय
तो पहेली नरकथी नीचे जतां नथी. त्रण लोक अने त्रण काळमां
सम्यग्दर्शन जेवी सुखदायक बीजी कोई वस्तु नथी. आ
सम्यग्दर्शन ज सर्व धर्मोनुं मूळ छे. आ विना जेटला क्रियाकांड
छे ते बधां दुःखदायक होय छे. १६.
सम्यग्दर्शन विना ज्ञान अने चारित्रनुं मिथ्यापणुं
मोक्षमहलकी परथम सीढी, या विन ज्ञान-चरित्रा,
सम्यक्ता न लहे, सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा;
‘दौल’ समझ़ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै,
यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै. १७.
८८ ][ छ ढाळा
*आवी अवस्थामां सम्यग्द्रष्टिनी पहेली नरकना नपुंसकोमां पण
उत्पत्ति थाय छे; एनाथी जुदा बीजा नपुंसकोमां तेनी उत्पत्ति थवानो
निषेध छे.
नोंधःजे जीव सम्यक्त्व पाम्या पहेलां, आगामी पर्यायनी नरक गति
(आयु) बांधे छे ते जीव आयु पूर्ण थवाथी ज्यारे मरण पामे छे त्यारे
नरकगतिमां पण उत्पन्न थाय छे; पण त्यां तेनी स्थिति (आयुष्य)
अल्प थई जाय छे. जेवी रीते श्रेणिक राजा सातमी नरकनुं आयुष्य