भवनवासी, नपुंसक, सर्व प्रकारनी स्त्री, एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय,
त्रणइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, अने कर्मभूमिना पशु थता नथी; (नीच
फळवाळा, ओछा अंगवाळा, अल्पायुवाळा अने दरिद्री थता
नथी;) विमानवासी देव, भोगभूमिना मनुष्य अथवा तिर्यंच ज
थाय छे. कर्मभूमिना तिर्यंच पण थतां नथी. कदाच नरकमां
सम्यग्दर्शन जेवी सुखदायक बीजी कोई वस्तु नथी. आ
सम्यग्दर्शन ज सर्व धर्मोनुं मूळ छे. आ विना जेटला क्रियाकांड
छे ते बधां दुःखदायक होय छे. १६.
सम्यक्ता न लहे, सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा;
‘दौल’ समझ़ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै,
यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै. १७.
उत्पत्ति थाय छे; एनाथी जुदा बीजा नपुंसकोमां तेनी उत्पत्ति थवानो
निषेध छे.
नरकगतिमां पण उत्पन्न थाय छे; पण त्यां तेनी स्थिति (आयुष्य)
अल्प थई जाय छे. जेवी रीते श्रेणिक राजा सातमी नरकनुं आयुष्य