सम्यग्दर्शन विना (ज्ञान-चरित्रा) ज्ञान अने चारित्र (सम्यक्ता)
साचापणुं (न लहै) पामता नथी; तेथी (भव्य) हे भव्य जीवो
करो, (सयाने दौल) हे समजु दौलतराम
नकामो-बिनजरूरी (मत खोवै) गुमाव नहि; [कारण के] (जो) जो
(सम्यक्) सम्यग्दर्शन (नहि होवै) न थयुं तो (यह) आ (नरभव)
मनुष्य पर्याय (फिर) फरीने (मिलन) मळवी (कठिन है) मुश्केल छे.
पड्युं पण आयुष्य सातमी नरकथी ओछुं थईने पहेली नरकनुं ज रह्युं
ए रीते जे जीव सम्यग्दर्शन पाम्या पहेलां तिर्यंच वा मनुष्य आयुनो
बंध करे छे ते भोगभूमिमां जाय छे परंतु कर्मभूमिमां तिर्यंच अथवा
मनुष्यपणे उपजे नहि.
पूर्वबंध तें होय तो, सम्यक् दोष न कोय.