Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भावार्थसम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान जोके एकसाथे
प्रगटे छे तोपण ते बन्ने जुदा जुदा गुणना पर्यायो छे.
सम्यग्दर्शन श्रद्धागुणनो शुद्धपर्याय छे, अने सम्यग्ज्ञान
ज्ञानगुणनो शुद्धपर्याय छे, वळी सम्यग्दर्शननुं लक्षण विपरीत
अभिप्राय रहित तत्त्वार्थश्रद्धान छे अने सम्यग्ज्ञाननुं लक्षण
संशय आदि दोष रहित स्व-परनो यथार्थपणे निर्णय छे.-ए रीते
बेउनां लक्षण जुदां जुदां छे. वळी सम्यग्दर्शन निमित्तकारण छे,
अने सम्यग्ज्ञान नैमित्तिक कार्य छे. आम ते बंनेमां कारण-
कार्यभावथी पण तफावत छे.
प्रश्नज्ञान-श्रद्धान तो युगपत् (एकसाथे) होय छे, तो
तेमां कारण-कार्यपणुं केम कहो छो?
उत्तर‘ए होय तो ए होय’ ए अपेक्षाए
कारणकार्यपणुं होय छे. जेम दीपक अने प्रकाश बंने युगपत् होय
छे, तोपण दीपक होय तो प्रकाश होय; तेथी दीपक कारण छे अने
प्रकाश कार्य छे. ए ज प्रमाणे ज्ञान-श्रद्धान पण छे.
(मोक्षमार्ग प्रकाशक पा. ९१)
ज्यां सुधी सम्यग्दर्शन थतुं नथी त्यां सुधीनुं ज्ञान
सम्यग्ज्ञान कहेवातुं नथी. आम होवाथी सम्यग्दर्शन ते
सम्यग्ज्ञाननुं कारण छे.
*
*पृथगाराधनमिष्टं दर्शनसहभाविनोऽपि बोधस्य ।।
लक्षणभेदेन यतो, नानात्वं संभवत्यनयोः ।।३२।।
चोथी ढाळ ][ १०१