मति-श्रुत दोय परोक्ष, अक्ष-मनतैं उपजाहीं;
अवधिज्ञान मनपर्जय दो हैं देश-प्रतच्छा,
द्रव्य-क्षेत्र-परिमाण लिये जानै जिय स्वच्छा. ३.
तेमां (मति-श्रुत) मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान (दोय) ए बन्ने
(परोक्ष) परोक्षज्ञान छे. [कारण के ते] (अक्ष मनतैं) इन्द्रियो
अने मनना निमित्तथी (उपजाहीं) उत्पन्न थाय छे.
(अवधिज्ञान) अवधिज्ञान अने (मनपर्जय) मनःपर्ययज्ञान (दो)
ए बन्ने ज्ञान (देश-प्रतच्छा) देशप्रत्यक्ष (हैं) छे, [कारण के ते
ज्ञानथी] (जिय) जीव (द्रव्य-क्षेत्र परिमाण) द्रव्य अने क्षेत्रनी
मर्यादा (लिये) लईने (स्वच्छा) स्पष्ट (जानै) जाणे छे.