Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 3 (Dhal 4).

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सम्यग्ज्ञानना भेद, परोक्ष अने देश-प्रत्यक्षनां
लक्षण
तास भेद दो हैं, परोक्ष परतछ तिन मांहीं,
मति-श्रुत दोय परोक्ष, अक्ष-मनतैं उपजाहीं;
अवधिज्ञान मनपर्जय दो हैं देश-प्रतच्छा,
द्रव्य-क्षेत्र-परिमाण लिये जानै जिय स्वच्छा. ३.
अन्वयार्थ(तास) ए सम्यग्ज्ञानना (परोक्ष) परोक्ष
अने (परतछ) प्रत्यक्ष (दो) बे (भेद हैं) भेदो छे; (तिन मांहीं)
तेमां (मति-श्रुत) मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान (दोय) ए बन्ने
(परोक्ष) परोक्षज्ञान छे. [कारण के ते] (अक्ष मनतैं) इन्द्रियो
अने मनना निमित्तथी (उपजाहीं) उत्पन्न थाय छे.
(अवधिज्ञान) अवधिज्ञान अने (मनपर्जय) मनःपर्ययज्ञान (दो)
ए बन्ने ज्ञान (देश-प्रतच्छा) देशप्रत्यक्ष (हैं) छे, [कारण के ते
ज्ञानथी] (जिय) जीव (द्रव्य-क्षेत्र परिमाण) द्रव्य अने क्षेत्रनी
मर्यादा (लिये) लईने (स्वच्छा) स्पष्ट (जानै) जाणे छे.
भावार्थआ सम्यग्ज्ञानना बे भेद छे(१) प्रत्यक्ष
सम्यग्ज्ञानं कार्यं सम्यक्त्वं कारणं वदन्ति जिनाः ।।
ज्ञानाराधनमिष्टं, सम्यक्त्वानन्तरं तस्मात् ।।३३।।
कारणकार्य विधानं, समकालं जायमानयोरपि हि ।।
दीपप्रकाशयोरिव, सम्यक्त्वज्ञानयोः सुघटम् ।।३४।।
(श्री अमृतचंद्राचार्य रचित पुरुषार्थसिद्ध-उपाय)
१०२ ][ छ ढाळा