Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 4 (Dhal 4).

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अवधिज्ञान अने मनःपर्ययज्ञान देशप्रत्यक्ष* छे, कारण के जीव
आ बे ज्ञानथी रूपी द्रव्यने द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भावनी
मर्यादापूर्वक जाणे छे.
सकलप्रत्यक्ष ज्ञाननुं लक्षण अने ज्ञाननो महिमा
सकल द्रव्यके गुन अनंत, परजाय अनंता,
जानै एकै काल, प्रगट केवलि भगवन्ता;
ज्ञान समान न आन जगतमें सुखको कारन,
इहि परमामृत जन्मजरामृतिरोग-निवारन. ४.
* जे ज्ञान रूपी वस्तुने द्रव्य-क्षेत्र-काळ अने भावनी मर्यादापूर्वक स्पष्ट
जाणे छे तेने देशप्रत्यक्ष कहे छे.
अन्वयार्थ[जे ज्ञानथी] (केवलि भगवन्ता) केवळज्ञानी
भगवान (सकल द्रव्यके) छए द्रव्योना (अनंत) अपरिमित
(गुन) गुणोने अने (अनंता) अनंत (परजाय) पर्यायोने (एकै
काल) एक साथे (प्रगट) स्पष्ट (जानै) जाणे छे [ते ज्ञानने]
(सकल) सकलप्रत्यक्ष अथवा केवळज्ञान कहे छे. (जगतमें) आ
१०४ ][ छ ढाळा