Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 5 (Dhal 4).

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जगतमां (ज्ञान समान) सम्यग्ज्ञानना जेवो (आन) बीजो कोई
पदार्थ (सुखको) सुखनुं (न कारण) कारण नथी. (इहि) आ
सम्यग्ज्ञान ज (जन्मजरामृतिरोग) जन्म-जरा अने मरणना
रोगोने (निवारन) दूर करवाने माटे (परमामृत) उत्कृष्ट अमृत
समान छे.
भावार्थ१. जे ज्ञान त्रणकाळ अने त्रणलोकवर्ती सर्व
पदार्थोने (अनंतधर्मात्मक सर्व द्रव्य-गुण-पर्यायोने) प्रत्येक
समयमां यथास्थित, परिपूर्णरूपथी स्पष्ट अने एकसाथे जाणे छे
ते ज्ञानने केवळज्ञान कहे छे. जे सकलप्रत्यक्ष छे.
२. द्रव्य, गुण अने पर्यायोने केवळी भगवान जाणे छे
पण तेना अपेक्षित धर्मोने जाणी शकता नथीएवुं मानवुं ते
असत्य छे. वळी ते अनंतने अथवा मात्र पोताना आत्माने ज
जाणे छे, परंतु सर्वने न जाणे
एवुं मानवुं ते पण न्याय-
विरुद्ध छे. केवळी भगवान सर्वज्ञ होवाथी अनेकान्तस्वरूप
प्रत्येक वस्तुने प्रत्यक्ष जाणे छे. (लघु जै. सि. प्र. प्रश्न ८७)
३. आ संसारमां सम्यग्ज्ञान जेवी सुखदायक अन्य कोई
वस्तु नथी. आ सम्यग्ज्ञान ज जन्म-जरा अने मृत्युरूपी त्रण
रोगोनो नाश करवा माटे उत्तम अमृत समान छे.
ज्ञानी अने अज्ञानीना कर्मनाशना विषयमां तफावत
कोटि जन्म तप तपैं, ज्ञान विन कर्म झरैं जे,
ज्ञानीके छिनमें, त्रिगुप्तितैं सहज टरैं ते;
चोथी ढाळ ][ १०५