पै निज आतमज्ञान विना, सुख लेश न पायौ. ५.
(जे कर्म) जेटला कर्मो (झरैं) नाश थाय छे (ते) तेटलां कर्मो
(ज्ञानीके) सम्यग्ज्ञानी जीवने (त्रिगुप्ति तैं) मन, वचन अने काया
तरफनी जीवनी प्रवृत्तिने रोकवाथी [निर्विकल्प शुद्ध स्वानुभवथी]
(छिनमें) क्षण मात्रमां (सहज) सहेलाईथी (टरैं) नाश पामे छे.
[आ जीव] (मुनिव्रत) मुनिओनां महाव्रतोने (धार) धारण करीने
(अनंत बार) अनंत वार (ग्रीवक) नवमी ग्रैवेयक सुधी
(उपजायौ) उत्पन्न थयो, (पै) परंतु (निज आतम) पोताना
आत्माना (ज्ञान विना) ज्ञान वगर (लेश) जरापण (सुख) सुख
(न पायौ) पामी शक्यो नहि.
नाश करे छे तेटलां कर्मोनो नाश सम्यग्ज्ञानी जीव स्वसन्मुख