आ जीव, मुनिना (द्रव्यलिंगी मुनिना) महाव्रतोने धारण करीने
तेना प्रभावथी नवमी ग्रैवेयक सुधीना विमानोमां अनंतवार
उत्पन्न थयो, परंतु आत्माना भेदविज्ञान (सम्यग्ज्ञान अथवा
स्वानुभव) विना ते जीवने त्यां पण लेशमात्र सुख मळ्युं नहि.
संशय-विभ्रम-मोह त्याग, आपो लख लीजे;
यह मानुषपर्याय, सुकुल, सुनिवौ जिनवानी,
इहविधि गये न मिले, सुमणि ज्यों उदधि समानी. ६.
(करीजे) करवो जोईए, अने (संशय) संशय, (विभ्रम) विपर्यय
तथा (मोह) अनध्यवसाय [अचोक्कसता] ने (त्याग) छोडीने
(आपो) पोताना आत्माने (लख लीजे) लक्षमां लेवो जोईए