Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 6 (Dhal 4).

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ज्ञातापणाने लीधे स्वरूपगुप्तिथी क्षणमात्रमां सहेजे करी नांखे छे.
आ जीव, मुनिना (द्रव्यलिंगी मुनिना) महाव्रतोने धारण करीने
तेना प्रभावथी नवमी ग्रैवेयक सुधीना विमानोमां अनंतवार
उत्पन्न थयो, परंतु आत्माना भेदविज्ञान (सम्यग्ज्ञान अथवा
स्वानुभव) विना ते जीवने त्यां पण लेशमात्र सुख मळ्युं नहि.
ज्ञानना दोष अने मनुष्यपर्याय वगेरेनी दुर्लभता
तातैं जिनवर-कथित तत्त्व अभ्यास करीजे,
संशय-विभ्रम-मोह त्याग, आपो लख लीजे;
यह मानुषपर्याय, सुकुल, सुनिवौ जिनवानी,
इहविधि गये न मिले, सुमणि ज्यों उदधि समानी. ६.
अन्वयार्थ(तातैं) तेथी (जिनवर-कथित) जिनेन्द्र
भगवाने कहेलां (तत्त्व) परमार्थ तत्त्वनो (अभ्यास) अभ्यास
(करीजे) करवो जोईए, अने (संशय) संशय, (विभ्रम) विपर्यय
तथा (मोह) अनध्यवसाय [अचोक्कसता] ने (त्याग) छोडीने
(आपो) पोताना आत्माने (लख लीजे) लक्षमां लेवो जोईए
चोथी ढाळ ][ १०७