जोईए; कारण के जेवी रीते समुद्रमां डूबेलुं अमूल्य रत्न फरीने
हाथ आवतुं नथी तेवी रीते मनुष्यशरीर, उत्तम श्रावककुळ अने
जिनवचनोनुं श्रवण वगेरे सुयोग पण वीती गया पछी फरी
फरीने प्राप्त थता नथी; तेथी आ अपूर्व अवसर न गुमावतां
आत्मस्वरूपनी ओळखाण (सम्यग्ज्ञाननी प्राप्ति) करीने आ
मनुष्य जन्म सफळ करवो जोईए.
ज्ञान आपको रूप भये, फिर अचल रहावै;
तास ज्ञानको कारन, स्व-पर विवेक बखानौ,
कोटि उपाय बनाय भव्य, ताको उर आनौ. ७.
आवै) आवता नथी; पण (ज्ञान) सम्यग्ज्ञान (आपको रूप)
आत्मानुं स्वरूप छे-जे (भये) प्राप्त थया (फिर) पछी (अचल)
अचळ (रहावै) कहे छे. (तास) ते (ज्ञानको) सम्यग्ज्ञाननुं