भेदविज्ञान (बखानौ) कह्युं छे, [तेथी] (भव्य) हे भव्य जीवो!
(कोटि) करोडो (उपाय) उपायो (बनाय) करीने (ताको) ते
भेदविज्ञानने (उर आनौ) हृदयमां धारण करो.
सम्यग्ज्ञान आत्मानुं स्वरूप छे, ते एकवार प्राप्त थया पछी
अक्षय थई जाय छे-कदी नाश पामतुं नथी, अचळ एकरूप रहे
छे. आत्मा अने पर वस्तुओनुं भेदविज्ञान ज ते सम्यग्ज्ञाननुं
कारण छे; तेथी आत्महितेच्छु भव्य जीवोए करोडो उपाय करीने
आ भेदविज्ञान द्वारा सम्यग्ज्ञान प्राप्त करवुं जोईए.
सो सब महिमा ज्ञान-तनी, मुनिनाथ कहैं हैं;
विषय-चाह दव-दाह, जगत-जन-अरनि दझावै,
तास उपाय न आन, ज्ञान-घनघान बुझावै. ८.
(आगे) भविष्यमां (जैहैं) जाशे. (सो) ए (सब) बधो
(ज्ञानतनी) सम्यग्ज्ञाननो (महिमा) प्रभाव छे-एम (मुनिनाथ)