जिनेन्द्रदेवे कह्युं छे. (विषय-चाह) पांच इन्द्रियोना विषयोनी
इच्छारूपी (दव-दाह) भयंकर दावानळ (जगत-जन) संसारी
जीवोरूपी (अरनि) अरण्य – जूना पुराणा जंगलने (दझावै) बाळी
रह्यो छे, (तास) तेनी शांतिनो (उपाय) उपाय (आन) बीजो
(न) नथी; [मात्र] (ज्ञान-घनघान) ज्ञानरूपी वरसादनो समूह
(बुझावै) शांत करे छे.
भावार्थः — भूत, वर्तमान अने भविष्य-ए त्रणे काळमां
जे जीवो मोक्ष पाम्या छे, पामशे अने (वर्तमानमां विदेहक्षेत्रे)
पामे छे ते आ सम्यग्ज्ञाननो ज प्रभाव छे, एम पूर्वाचार्योए
बताव्युं छे. जेवी रीते दावानल (वनमां लागेली आग) त्यांनी
चोथी ढाळ ][ १११