Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 9 (Dhal 4).

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बधी वस्तुओने भस्म करी नांखे छे तेवी रीते पांच इन्द्रियो
संबंधी विषयोनी इच्छा संसारी जीवोने बाळे छे-दुःख आपे छे,
अने जेवी रीते धोधमार वरसाद ते दावानळने बुझावी नाखे छे
तेवी रीते आ सम्यग्ज्ञान ते विषयोनी इच्छाने शांत करे छे
नष्ट करे छे.
पुण्य-पापमां हर्ष-विषादनो निषेधा अने सार सार
वातो
पुण्यपाप फलमाहिं, हरख-विलखौ मत भाई,
यह पुद्गल-परजाय उपजि विनसै फिर थाई;
लाख बातकी बात यही, निश्चय उर लाओ,
तोरि सकल जगदंद-फंद, नित आतम ध्याओ. ९.
अन्वयार्थ(भाई) हे आत्महितैषी प्राणी! (पुण्य-
फलमांहि) पुण्यना फळोमां (हरख मत) हर्ष न कर, अने
(पाप-फलमाहिं) पापना फळोमां (विलखौ मत) द्वेष न कर
[कारण के आ पुण्य अने पाप] (पुद्गल परजाय) पुद्गलना
पर्याय छे. [ते] (उपजि) उत्पन्न थईने (विनसै) नाश पामी
जाय छे अने (फिर) फरीने (थाई) उत्पन्न थाय छे. (उर)
पोताना अंतरमां (निश्चय) निश्चयथी खरेखर (लाख बातकी
बात) लाखो वातनो सार (यही) आ ज प्रमाणे (लाओ) ग्रहण
करो के (सकल) पुण्य-पापरूप बधाय (जगदंद-फंद) जन्म-
मरणना द्वंद्व [राग-द्वेष] रूप विकारी-मलिनभावो (तोरि) तोडी
(नित) हमेशां (आतम ध्याओ) पोताना आत्मानुं ध्यान करो.
११२ ][ छ ढाळा