Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 15 (Dhal 4).

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१२४ ][ छ ढाळा
निरतिचार श्रावकव्रत पाळवानुं फळ
बारह व्रत के अतीचार, पन पन न लगावै,
मरण समै संन्यास धारि, तसु दोष नशावै;
यों श्रावकव्रत पाल, स्वर्ग सोलम उपजावै;
तहँतैं चय नरजन्म पाय, मुनि ह्वै शिव जावै. १५.
अन्वयार्थजे जीव (बारह व्रत के) बार व्रतना (पन
पन) पांच-पांच (अतीचार) अतिचारोने (न लगावै) लगाडतो
नथी, अने (मरण समै) मरण वखते (संन्यास) समाधि (धारि)
धारण करीने (तसु) तेना (दोष) दोषोने (नशावै) दूर करे छे
ते (यों) आ प्रकारे (श्रावकव्रत) श्रावकना व्रतो (पाल) पाळीने
(सोलह) सोळमा (स्वर्ग) स्वर्ग सुधी (उपजावै) उपजे छे,
[अने] (तहँतैं) त्यांथी (चय) मरण पामीने (नरजन्म)
मनुष्यपर्याय (पाय) पामीने (मुनि) मुनि (ह्वै) थईने (शिव)
मोक्ष (जावै) जाय छे.
भावार्थजे जीव श्रावकना उपर कहेलां बार व्रतोने
विधिपूर्वक जीवनपर्यंत पाळतां तेनां पांच-पांच अतिचारोने पण
टाळे छे अने मृत्यु वखते पूर्व अवस्थामां उपार्जन करेलां दोषो