थतां मरीने सोळमां स्वर्ग सुधी ऊपजे छे, अने देवनुं आयुष्य
पूर्ण थतां मनुष्यशरीर पामी, मुनिपद अंगीकार करी मोक्ष (पूर्ण
शुद्धता) प्राप्त करे छे.
संवर-निर्जरारूप शुद्धभाव छे; धर्मनी पूर्णता ते मोक्ष छे.
ज्ञानने सम्यग्ज्ञान कहेवाय छे. आ रीते जोके ए बन्ने
(सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान) साथे ज होय छे, तोपण तेनां
लक्षणो जुदा जुदा छे अने कारण-कार्य भावनो तफावत छे अर्थात्
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञाननुं निमित्तकारण छे.
प्राण छोडवामां आवे छे त्यां ‘आपघात’ कहेवाय छे; पण
‘संल्लेखना’मां सम्यग्दर्शन सहित आत्मकल्याण (धर्म)ना हेतुथी
काया अने कषायने कृश करता थकां सम्यक् आराधनापूर्वक
समाधिमरण थतुं होवाथी ते आपघात नथी पण धर्मध्यान छे.