भावार्थ ः — ज्यारे आ जीव तिर्यंचगतिमां कोई वखत
स्वयं निर्बल पशु थयो तो पोते असमर्थ होवाथी पोतानाथी
बळवान प्राणीओ द्वारा खवाई गयो अने ते तिर्यंचगतिमां
छेदावुं, भेदावुं, भूख, तरस, भारवहन करवो, ठंडी, गरमी
वगेरेना दुःखो पण सहन कर्यां. ७.
तिर्यंचनां दुःखनी अधिाकता अने नरकगति
प्राप्तिनुं कारण
वध बंधन आदिक दुख घने, कोटि जीभतैं जात न भने;
अति संक्लेश भावतैं मर्यो, घोर श्वभ्रसागरमें पर्यो. ८.
अन्वयार्थ ः — [आ तिर्यंचगतिमां जीवे बीजां पण] (वध)
हणावुं, (बंधन) बंधाववुं (आदिक) वगेरे (घने) घणां (दुख)
दुःखो सहन कर्यां; [ते] (कोटि) करोडो (जीभतैं) जीभथी (भने
न जात) कही शकातां नथी. [आथी करीने] (अति संक्लेश) घणा
माठां (भावतैं) परिणामोथी (मर्यो) मरण पामीने (घोर) भयानक
(श्वभ्रसागरमें) नरकरूपी समुद्रमां (पर्यो) जई पड्यो.
१० ][ छ ढाळा