अकाम निर्जरा एम साबित करे छे के कर्मना उदय प्रमाणे
ज जीव विकार करतो नथी पण गमे तेवा कर्मोदय होवा छतां
जीव स्वयं पुरुषार्थ करी शके छे.
देव गतिमां वैमानिक देवोनुं दुःख
जो विमानवासी हू थाय, सम्यग्दर्शन बिन दुख पाय;
तँहतें चय थावर तन धरैं, यों परिवर्तन पूरे करैं. १६.
अन्वयार्थः — (जो) जो (विमानवासी) वैमानिकदेव (हू)
पण (थाय) थयो [तो त्यां] (सम्यग्दर्शन) सम्यग्दर्शन (विना)
विना (दुख) दुःख (पाय) पाम्यो [अने] (तँहतें) त्यांथी (चय)
मरीने (थावर तन) स्थावरनुं शरीर (धरै) धारण करे छे, (यों)
आवी रीते [आ जीव] (परिवर्तन) पांचे परावर्तन (पूरे करे)
पूरां कर्या करे छे.
भावार्थ ः — आ जीव वैमानिक देवोमां पण उत्पन्न थयो
तोपण त्यां तेणे सम्यग्दर्शन विना दुःखो उठाव्यां अने त्यांथी
२० ][ छ ढाळा