Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नारकीओ द्वारा घाणीमां पीलावुं, अग्निमां बळवुं, करवतथी
चीरावुं, कडाईमां ऊकळवुं, टुकडेटुकडा करी नांखवा वगेरेथी अनंत
दुःखो उठावे छे. तोपण पळ मात्र साता (शान्ति) मळती नथी,
कारण के शरीरना टुकडेटुकडा थवा छतां पण पारांनी माफक
फरीथी जेवुं ने तेवुं मळी जाय छे. आयु पूर्ण थया विना मरण
थतुं नथी. नरकमां आवां दुःखो ओछामां ओछा दश हजार वर्ष
सुधी तो सहन करवां ज पडे छे पण जो उत्कृष्ट आयुष्यनो बंध
पड्यो होय तो तेत्रीस सागरोपम वर्ष सुधी शरीर छूटतुं नथी.
मनुष्यगतिनुं दुःखकोई विशेष पुण्यकर्मना उदयथी आ
जीव क्यारेक मनुष्यपर्याय पामे छे. त्यारे नव मास तो माताना
पेटमां ज केद रहे छे, त्यां शरीर संकोचाईने रहेवाथी घणी
तकलीफ पामे छे. बाळपणमां ज्ञान वगर, जुवानीमां विषय-
भोगोमां आसक्तिवश अने घडपणमां इन्द्रियोनी शिथिलता
अथवा मरणपर्यंत क्षयरोग (टी.बी.) वगेरेना कारणे आत्म-
दर्शनथी विमुख रहे छे, अने आत्मोद्धारनो मार्ग पामतो नथी.
देवगतिनुं दुःखजो कोई शुभकर्मना उदयथी देव पण
थाय छे तो बीजा मोटा देवोनां वैभव अने सुख जोई हृदयमां
दुःखी थतो रहे छे. कदाचित
् वैमानिक देव पण थाय तो त्यां
पण जो समकित न पामे तो आत्मिक शांति पामतो नथी. तथा
अंत समये मंदारमाळा करमाई जतां आभूषणो अने शरीरनी
कांति क्षीण थतां मृत्यु नजीक आव्युं जाणीने घणो दुःखी थाय
छे अने वलखां मारी मारीने मरे छे. अने पछी एकेन्द्रिय जीव
सुद्धां थाय छे एटले के फरीने तिर्यंचगतिमां जई पडे छे. आवी
पहेली ढाळ ][ २३