(तिनमांहि) तेमां (विपर्ययत्व) ऊंधी (सरधै) श्रद्धा करवी [ते
अगृहीत मिथ्यादर्शन छे.] (चेतनको) आत्मानुं (रूप) स्वरूप
(उपयोग) देखवुं-जाणवुं अथवा दर्शन-ज्ञान (है) छे [अने ते]
(बिनमूरत) अमूर्तिक (चिनमूरत) चैतन्यमय [अने] (अनूप)
उपमारहित छे.
करवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे. एटला माटे आ सात तत्त्वो जाणवा
जरूरना छे. साते तत्त्वोनुं विपरीत श्रद्धान करवुं तेने अगृहीत
मिथ्यादर्शन कहे छे. जीव ज्ञान-दर्शन उपयोगस्वरूप अर्थात
ताकों न जान विपरीत मान, करि करै देहमें निज पिछान. ३.