Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 3 (Dhal 2).

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अन्वयार्थ(जीवादि) जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर,
निर्जरा, अने मोक्ष, (प्रयोजनभूत) मतलबना (तत्त्व) तत्त्व छे
(तिनमांहि) तेमां (विपर्ययत्व) ऊंधी (सरधै) श्रद्धा करवी [ते
अगृहीत मिथ्यादर्शन छे.] (चेतनको) आत्मानुं (रूप) स्वरूप
(उपयोग) देखवुं-जाणवुं अथवा दर्शन-ज्ञान (है) छे [अने ते]
(बिनमूरत) अमूर्तिक (चिनमूरत) चैतन्यमय [अने] (अनूप)
उपमारहित छे.
भावार्थयथार्थपणे शुद्धात्मद्रष्टि द्वारा जीव, अजीव,
आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा अने मोक्ष ए सात तत्त्वनी श्रद्धा
करवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे. एटला माटे आ सात तत्त्वो जाणवा
जरूरना छे. साते तत्त्वोनुं विपरीत श्रद्धान करवुं तेने अगृहीत
मिथ्यादर्शन कहे छे. जीव ज्ञान-दर्शन उपयोगस्वरूप अर्थात
ज्ञाता-द्रष्टा छे, अमूर्तिक, चैतन्यमय अने उपमारहित छे.
जीवतत्त्वना विषयमां मिथ्यात्व (™धाी श्रद्धा)
पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनतैं न्यारी है जीव चाल;
ताकों न जान विपरीत मान, करि करै देहमें निज पिछान. ३.
बीजी ढाळ ][ ३३