जीवनो स्वभाव अथवा परिणाम (न्यारी) भिन्न (है) छे [तोपण
मिथ्याद्रष्टि जीव] (ताकों) ते आत्मस्वभावने (न जान) जाणतो
नथी अने (विपरीत) ऊलटुं (मान करि) मानीने (देहमें) शरीरमां
(निज) आत्मानी (पिछान) ओळखाण (करै) करे छे.
द्रव्योथी जुदो छे; पण मिथ्याद्रष्टि जीव आत्माना स्वभावनी
यथार्थ श्रद्धा नहि करतां अज्ञानवश ऊलटुं मानीने, शरीर छे ते
ज हुं छुं, शरीरना कार्य हुं करी शकुं छुं, मारी इच्छानुसार
शरीरनी अवस्था राखी शकुं छुं एम शरीरने ज आत्मा माने
छे. [आ जीवतत्त्वनी विपरीत श्रद्धा छे.] ३.