Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 5 (Dhal 2).

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अन्वयार्थ[मिथ्याद्रष्टि जीव मिथ्यादर्शनना कारणथी
माने छे के] (मैं) हुं (सुखी) सुखी, (दुखी) दुःखी, (रंक) गरीब,
(राव) राजा छुं, (मेरे) मारां (धन) रूपिया-पैसा वगेरे (गृह)
घर (गोधन) गाय, भेंस आदि (प्रभाव) मोटाई [छे; वळी] (मेरे
सुत) मारां संतान तथा (तिय) मारी स्त्री छे; (मैं) हुं (सबल)
बळवान, (दीन) निर्बळ, (बेरूप) कुरूप, (सुभग) सुंदर, (मूरख)
मूर्ख अने (प्रवीन) चतुर छुं.
भावार्थ(१) जीव तत्त्वनी भूलजीव तो त्रिकाळ
ज्ञानस्वरूप छे तेने अज्ञानी जीव जाणतो नथी. अने जे शरीर
छे ते हुं ज छुं, शरीरना कार्य हुं करी शकुं छुं, शरीर स्वस्थ होय
तो मने लाभ थाय, बाह्य अनुकूळ संयोगथी हुं सुखी अने
प्रतिकूळ संयोगथी हुं दुःखी, हुं निर्धन, हुं धनवान, हुं बळवान,
हुं निर्बळ, हुं मनुष्य, हुं कुरूप, हुं सुंदर
एम माने छे, शरीर
आश्रित उपदेश अने उपवासादि क्रियाओमां पोतापणुं माने छे
ए वगेरे
मिथ्या अभिप्राय वडे जे पोताना परिणाम नथी पण
बधाय पर पदार्थना ज परिणाम छे, तेने आत्माना परिणाम
माने छे ते जीवतत्त्वनी भूल छे.
अजीव अने आuाव तत्त्वनुं विपरीत श्रद्धान
तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान;
रागादि प्रगट ये दुःख दैन, तिनहीको सेवत गिनत चैन. ५.
बीजी ढाळ ][ ३५
शरीर वगेरे जे पदार्थ देखवामां आवे छे ते आत्माथी त्रिकाळ जुदां छे,
ते पदार्थोना ठीक रहेवाथी के बगडवाथी आत्मानुं तो कांई ठीक थतुं
नथी तेम ज बगडतुं नथी. परंतु मिथ्याद्रष्टि एनाथी उलटुं माने छे.