शकता नथी, छतां अज्ञानी तेम मानतो नथी. परमां कर्तृत्व,
ममत्वरूप मिथ्यात्व अने राग-द्वेषादि शुभाशुभ आस्रव भाव ते
प्रत्यक्ष दुःख देनारा छे, बंधना ज कारण छे, छतां तेने अज्ञानी
जीव सुखकर जाणीने सेवे छे. वळी शुभभाव पण बंधननुं कारण
छे, आस्रव छे, तेने हितकर माने छे. पर द्रव्य जीवने लाभ-
नुकसान करी शके नहि, छतां तेने इष्ट-अनिष्ट मानी तेमां प्रीति-
अप्रीति करे छे; मिथ्यात्व, राग-द्वेषनुं स्वरूप ओळखतो नथी, पर
पदार्थ मने सुख-दुःख आपे छे अथवा राग-द्वेष-मोह करावे छे,
एम माने छे, आ आस्रव तत्त्वनी भूल छे.
आतमहितहेतु विराग-ज्ञान, ते लखैं आपकूं कष्टदान. ६.
(फलमंझार) फळमां (रति) प्रेम (करै) करे छे, [अने कर्मबंधना]