रागद्वेषनो अभाव [एटले के पोताना असली स्वभावमां
सम्यग्दर्शन] ते (आतमहित) आत्माना हितना (हेतु) कारण छे
(ते) तेने (आपकूं) आत्माने (कष्टदान) दुःखना आपनार (लखैं)
माने छे.
मिथ्याद्रष्टि जीव तेने अनुकूळ-प्रतिकूळ मानीने तेनाथी हुं सुखी-
दुःखी छुं एवी कल्पना वडे राग-द्वेष, आकुळता करे छे. धन,
योग्य स्त्री, पुत्रादिना संयोग थतां रति करे छे; रोग, निद्रा,
निर्धनता, पुत्रवियोग वगेरे थतां अरति करे छे; पुण्य-पाप बन्ने
बंधनकर्ता छे, पण तेम नहि मानीने पुण्यने हितकर माने छे;
तत्त्वद्रष्टिथी तो पुण्य-पाप बंने अहितकर ज छे, परंतु अज्ञानी
एवुं निर्धाररूप मानतो नथी ते बंधतत्त्वनी ऊंधी श्रद्धा छे.
जेटलो अभाव ते वैराग्य छे, अने ते सुखना कारणरूप छे, छतां
अज्ञानी जीव तेने कष्टदाता माने छे. आ संवरतत्त्वनी विपरीत
श्रद्धा छे.
स्वरूप छे.