Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 13 (Dhal 2).

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मिथ्याज्ञान (जो है) जेने कहेवामां आवे छे तेनुं वर्णन (सुन)
सांभळो.
भावार्थजे धर्ममां मिथ्यात्व तथा रागादिरूप भावहिंसा
तथा त्रस अने स्थावर जीवोना घातरूप द्रव्यहिंसाने धर्म
मानवामां आवे छे तेने कुधर्म कहेवामां आवे छे. जे प्राणी आ
कुधर्मनी श्रद्धा करे छे ते दुःख पामे छे. आ खोटा गुरु, देव अने
धर्मनी श्रद्धा करवी तेने ‘‘गृहीत मिथ्यादर्शन’’ कहे छे. आ
परोपदेश वगेरे बाह्य कारणना आश्रयथी ग्रहण करवामां आवे
छे तेथी ‘‘गृहीत’’ कहेवाय छे. हवे गृहीत मिथ्याज्ञाननुं वर्णन
करवामां आवे छे.
गृहीत मिथ्याज्ञाननुं लक्षण
एकान्तवाद-दूषित समस्त, विषयादिक पोषक अप्रशस्त;
कपिलादि-रचित श्रुतको अभ्यास, सो है कुबोध बहु देन त्रास. १३
बीजी ढाळ ][ ४५
अन्वयार्थ(एकान्तवाद) एकान्तरूप कथनथी (दूषित)
खोटां (अने) (विषयादिक) पांच इन्द्रियोना विषय वगेरेनी
(पोषक) पुष्टि करवावाळां (कपिलादि-रचित) कपिलादि द्वारा
रचित (अप्रशस्त) खोटां (समस्त) बधां (श्रुतको) शास्त्रोने