Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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(अभ्यास) भणवां, भणाववां, सांभळवां अने संभळाववां (सो)
ते (कुबोध) मिथ्याज्ञान [छे; ते] (बहु) घणां (त्रास) दुःखने
(देन) आपवावाळुं छे.
भावार्थ१. वस्तु अनेकधर्मात्मक छे; तेमांथी कोई पण
एक ज धर्मने आखी वस्तु कहेवाना कारणथी दूषित (मिथ्या)
तथा विषय-कषाय आदिने पुष्ट करवावाळां कुगुरुओनां बनावेलां
सर्व प्रकारनां खोटां शास्त्रोने धर्मबुद्धिथी लखवां-लखाववां,
भणवां-भणाववां, सांभळवां अने संभळाववां तेने गृहीत
मिथ्याज्ञान कहे छे.
२. जे शास्त्र जगतमां सर्वथा नित्य, एक अद्वैत अने
सर्वव्यापक ब्रह्ममात्र वस्तु छे, अन्य कोई पदार्थ नथी, एम वर्णन
करे छे ते शास्त्र एकान्तवादथी दूषित होवाथी कुशास्त्र छे.
३. वस्तुने सर्वथा क्षणिक-अनित्य, अथवा (४) गुण-गुणी
सर्वथा जुदा छे, कोई गुणना संयोगथी वस्तु छे एम कथन करे,
अथवा (५) जगतनो कोई कर्ता, हर्ता अने नियंता छे एम वर्णन
करे, अथवा (६) दया, दान, महाव्रतादिना शुभभाव जे
पुण्यास्रव छे पराश्रयरूप छे तेनाथी तथा मुनिने आहार देवाना
शुभभावथी संसार परित (टूंको, मर्यादित) थवो; तथा उपदेश
देवाना शुभ भावथी परमार्थे धर्म थाय वगेरे अन्य धर्मियोना
ग्रन्थोमां जे विपरीत कथन छे, ते एकान्त अने अप्रशस्त होवाथी
कुशास्त्र छे. केमके तेमां प्रयोजनभूत सात तत्त्वनुं यथार्थपणुं नथी.
ज्यां एक तत्त्वनी भूल होय त्यां साते तत्त्वोनी भूल होय ज,
एम समजवुं.
४६ ][ छ ढाळा