ते (कुबोध) मिथ्याज्ञान [छे; ते] (बहु) घणां (त्रास) दुःखने
(देन) आपवावाळुं छे.
तथा विषय-कषाय आदिने पुष्ट करवावाळां कुगुरुओनां बनावेलां
सर्व प्रकारनां खोटां शास्त्रोने धर्मबुद्धिथी लखवां-लखाववां,
भणवां-भणाववां, सांभळवां अने संभळाववां तेने गृहीत
मिथ्याज्ञान कहे छे.
करे छे ते शास्त्र एकान्तवादथी दूषित होवाथी कुशास्त्र छे.
अथवा (५) जगतनो कोई कर्ता, हर्ता अने नियंता छे एम वर्णन
करे, अथवा (६) दया, दान, महाव्रतादिना शुभभाव जे
पुण्यास्रव छे पराश्रयरूप छे तेनाथी तथा मुनिने आहार देवाना
शुभभावथी संसार परित (टूंको, मर्यादित) थवो; तथा उपदेश
देवाना शुभ भावथी परमार्थे धर्म थाय वगेरे अन्य धर्मियोना
ग्रन्थोमां जे विपरीत कथन छे, ते एकान्त अने अप्रशस्त होवाथी
कुशास्त्र छे. केमके तेमां प्रयोजनभूत सात तत्त्वनुं यथार्थपणुं नथी.
ज्यां एक तत्त्वनी भूल होय त्यां साते तत्त्वोनी भूल होय ज,
एम समजवुं.