Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 14-15 (Dhal 2).

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गृहीत मिथ्याचारित्रनुं लक्षण
जो ख्याति लाभ पूजादि चाह, धरि करन विविध विध देहदाह;
आतम-अनात्मके ज्ञानहीन, जे जे करनी तन करन छीन. १४.
अन्वयार्थ(जो) जे (ख्याति) प्रसिद्धता (लाभ) फायदो
अने (पूजादि) मान्यता अने आदर वगेरेनी (चाह धरि) इच्छा
करीने (देहदाह करन) शरीरने पीडा करवावाळां (आतम अनात्म
के) आत्मा अने परवस्तुओना (ज्ञानहीन) भेदज्ञानथी रहित
(तन) शरीरने (छीन) क्षीण (करन) करवावाळी (विविध विधि)
अनेक प्रकारनी (जे जे करनी) जे जे क्रियाओ छे ते बधी
(मिथ्याचारित्र) मिथ्याचारित्र कहेवाय छे.
भावार्थशरीर अने आत्मानुं भेदविज्ञान नहि होवाथी
यश, धन, दोलत, आदर-सत्कार वगेरेनी इच्छाथी मान आदि
कषायने वशीभूत थईने शरीरने क्षीण करवावाळी अनेक प्रकारनी
क्रिया करे छे तेने ‘गृहीत मिथ्याचारित्र’ कहे छे.
मिथ्याचारित्रना त्यागनो अने आत्महितमां लागवानो
उपदेश
ते सब मिथ्याचारित्र त्याग, अब आतम के हितपंथ लाग;
जगजाल-भ्रमणको देहु त्याग, अब दौलत
! निज आतम सुपाग.
अन्वयार्थ(ते) ते (सब) बधां (मिथ्याचारित्र) मिथ्या-
चारित्रने (त्याग) छोडीने (अब) हवे (आतमके) आत्माना
(हित) कल्याणना (पंथ) मार्गे (लाग) लागी जाओ, (जगजाल)
संसारनी जाळमां (भ्रमणको) भटकवानो (त्याग देहु) त्याग करो.
बीजी ढाळ ][ ४७