Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Antar-pradarshan.

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दर्शनमोहआत्माना स्वरूपनी विपरीत श्रद्धा.
द्रव्यहिंसात्रस अने स्थावर प्राणीओनो घात करवो.
भावहिंसामिथ्यात्व, राग अने द्वेष वगेरे विकारोनी
उत्पत्ति.
मिथ्यादर्शनजीवादि तत्त्वनी विपरीत श्रद्धा.
मूर्तिकरूप, रस, गंध अने स्पर्श सहित वस्तु.
अन्तर-प्रदर्शन
(१) आत्मा अने जीवमां कांई अन्तर नथी, पर्यायवाचक शब्द
छे.
(२) अगृहीत (निसर्गज) तो उपदेशादिना निमित्त विना थाय
छे, परंतु गृहीतमां उपदेशादि निमित्त होय छे.
(३) मिथ्यात्व अने मिथ्यादर्शनमां कांई तफावत नथी, मात्र
बन्ने पर्यायवाचक शब्दो छे.
(४) सुगुरुमां मिथ्यात्वादि दोष होता नथी परंतु कुगुरुमां होय
छे. विद्यागुरु ते सुगुरु अने कुगुरुथी जुदी व्यक्ति छे.
मोक्षमार्गना प्रसंगमां मुक्तिमार्गना प्रदर्शक सुगुरुथी
तात्पर्य छे.
अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति
तेषामेवोत्पत्तिर्हिंसेति जिनागमस्य संक्षेपः ।।४४।। (पु०सि०)
अर्थखरेखर रागादि भावोनुं प्रगट न थवुं ते अहिंसा छे अने ते
रागादि भावोनी उत्पत्ति थवी ते हिंसा छे---एवुं जैनशास्त्रनुं टूंकुं रहस्य छे.
५२ ][ छ ढाळा