Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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होवाथी ते ज निश्चयबंध छे, जे छोडवायोग्य छे.
२. मिथ्यात्व अने क्रोधादिरूप भाव ते सर्वने सामान्यपणे
कषाय कहेवाय छे. (मोक्षमार्ग प्र० पा. ३१.) एवा कषायनो
अभाव तेने शम कहेवाय छे. अने दम एटले जे ज्ञेय ज्ञायक
संकर दोष टाळी इन्द्रियोने जीतीने ज्ञानस्वभाव वडे अन्य
द्रव्यथी अधिक (जुदो, परिपूर्ण) आत्माने जाणे छे तेने
जे
निश्चयनयमां स्थित साधुओ छे तेओखरेखर जितेन्द्रिय कहे छे.
(समयसार गाथा ३१)
स्वभाव-परभावना भेदज्ञानना बळवडे द्रव्येन्द्रिय,
भावेन्द्रिय अने तेना विषयोथी आत्मानुं स्वरूप जुदुं छे एम
जाणवुं तेनुं नाम इन्द्रियोनुं दमन कहेवामां आवे छे. परंतु
आहारादि तथा पांच इन्द्रियोना विषयरूप बाह्य वस्तुना
त्यागरूप जे मंद कषाय छे तेनाथी खरेखर इन्द्रियदमन थतुं
नथी, केम के ते तो शुभराग छे, पुण्य छे, माटे बंधनुं कारण
छे एम समजवुं.
३. शुद्धात्माने आश्रित सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप
शुद्धभाव ते ज संवर छे. प्रथम निश्चयसम्यग्दर्शन थतां स्वद्रव्यना
आलंबन अनुसार संवर-निर्जरा शरू थाय छे. क्रमे क्रमे जेटला
अंशे रागनो अभाव, तेटले अंशे संवर-निर्जरारूप धर्म थाय छे.
स्वसन्मुखताना बळथी शुभाशुभ इच्छानो निरोध ते तप छे. ते
तपथी निर्जरा थाय छे.
४. संवरपुण्य-पापरूप अशुद्धभाव (आस्रवो) आत्माना
७२ ][ छ ढाळा