Chha Dhala (Hindi). Uprokt bhoolokA phal.

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(२) शरीरकी उत्पत्तिसे वह जीवका जन्म और शरीरके वियोगसे
जीवका मरण मानता है; यानी अजीवको जीव मानता है। यह
अजीवतत्त्वकी भूल है।
(३) मिथ्यात्व, रागादि प्रगट दुःख देनेवाले हैं; तथापि उनको
सुखरूप मानकर उनका सेवन करता है; यह आस्रवतत्त्वकी
भूल है।
(४) वह अपने आत्माको भूलकर, शुभको इष्ट (लाभदायी) तथा
अशुभको अनिष्ट (हानिकारक) मानता है; किन्तु तत्त्वदृष्टिसे
वे दोनों अनिष्ट हैं
ऐसा नहीं मानता। वह बन्धतत्त्वकी
भूल है।
(५) सम्यग्ज्ञान तथा सम्यग्ज्ञानसहित वैराग्य (आत्महितके यथार्थ
साधन) जीवको सुखरूप है, तथापि उन्हें कष्टदायक और
समझमें न आये ऐसा मानता है। वह संवरतत्त्वकी भूल है।
(६) अपने आत्माकी शक्तियोंको भूलकर, शुभाशुभ इच्छाओंको न
रोककर इन्द्रिय-विषयोंकी इच्छा करता रहता है, वह
निर्जरातत्त्वकी भूल है।
(७) सम्यग्दर्शनपूर्वक ही पूर्ण निराकुलता प्रगट होती है और वही
सच्चा सुख है;ऐसा न मानकर यह जीव बाह्य सुविधाओंमें
सुख मानता है, वह मोक्षतत्त्वकी भूल है।
उपरोक्त भूलोंका फल
इस ग्रंथकी पहली ढालमें इन भूलोंका फल बताया है। इन
भूलोंके फलस्वरूप जीवको प्रतिसमय-बारम्बार अनन्त दुःख
भोगना पड़ता है अर्थात् चारों गतियोंमें मनुष्य, देव, तिर्यंच और
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