किंचित् संयम नहीं होता; तथापि वह इन्द्रादिके द्वारा पूजा जाता
है । तीन लोक और तीन कालमें निश्चयसम्यक्त्वके समान सुखकारी
अन्य कोई वस्तु नहीं है । सर्व धर्मोंका मूल, सार तथा मोक्षमार्गकी
प्रथम सीढ़ी यह सम्यक्त्व ही है; इसके बिना ज्ञान और चारित्र
सम्यक्पनेको प्राप्त नहीं होते; किन्तु मिथ्या ही कहलाते हैं ।
नपुंसक, स्त्री, स्थावर, विकलत्रय, पशु, हीनांग, नीच गोत्रवाला,
अल्पायु तथा दरिद्री नहीं होता । मनुष्य और तिर्यंच सम्यग्दृष्टि
मरकर वैमानिक देव होता है देव और नारकी सम्यग्दृष्टि मरकर
कर्मभूमिमें उत्तम क्षेत्रमें मनुष्य ही होता है । यदि सम्यग्दर्शन होनेसे
पूर्व–१. देव, २. मनुष्य, ३. तिर्यंच या ४. नरकायुका बन्ध हो
गया हो तो वह मरकर १. वैमानिक देव, २. भोगभूमिका मनुष्य;
३. भोगभूमिका तिर्यंच अथवा ४. प्रथम नरकका नारकी होता है ।
इससे अधिक नीचेके स्थानमें जन्म नहीं होता । –इसप्रकार
निश्चय-सम्यग्दर्शनकी अपार महिमा है ।
सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिये; क्योंकि यदि इस मनुष्यभवमें
निश्चयसम्यक्त्व प्राप्त नहीं किया तो पुनः मनुष्यपर्यायकी प्राप्ति
आदिका सुयोग मिलना कठिन है ।