Chha Dhala (Hindi). Teesaree dhalkA lakShan sangrah.

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स्पर्श :–हलका, भारी, रूखा, चिकना, कड़ा, कोमल, ठण्डा, गर्म
–यह आठ स्पर्श हैं ।
तीसरी ढालका लक्षण-संग्रह
अनायतन :–कुगुरु, कुदेव, कुधर्म और इन तीनोंके सेवक –ये
छहों अधर्मके स्थानक ।
अनायतनदोष :–सम्यक्त्वका नाश करनेवाले कुदेवादिकी प्रशंसा
करना ।
अनुकम्पा :–प्राणी मात्र पर दयाका भाव ।
अरिहन्त :–चार घातिकर्मोंसे रहित, अनन्तचतुष्टयसहित वीतराग
और केवलज्ञानी परमात्मा ।
अलोक :–जहाँ आकाशके अतिरिक्त अन्य द्रव्य नहीं है, वह
स्थान ।
अविरति :–पापोंमें प्रवृत्ति अर्थात् १. निर्विकार स्वसंवेदनसे विपरीत
अव्रत परिणाम २. छह काय (पाँचों स्थावर तथा एक
त्रसकाय) जीवोंकी हिंसाके त्यागरूप भाव न होना तथा पाँच
इन्द्रिय और मनके विषयोंमें प्रवृत्ति करना –ऐसे बारह प्रकार
अविरति है ।
अविरति सम्यग्दृष्टि :–सम्यग्दर्शन सहित; किन्तु व्रतरहित ऐसे
चौथे गुणस्थानवर्ती जीव ।
आस्तिक्य :–जीवादि छह द्रव्य, पुण्य और पाप, संवर, निर्जरा,
मोक्ष तथा परमात्माके प्रति विश्वास सो आस्तिक्य
कहलाता है ।
८८ ][ छहढाला