Chha Dhala (Hindi).

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पुद्गल :–जो पुरे और गले । परमाणु बन्धस्वभावी होनेसे मिलते
हैं तथा पृथक् होते हैं; इसलिये वे पुद्गल कहलाते हैं अथवा
जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श हो वह पुद्गल ।
प्रमाद :–स्वरूपमें असावधानी पूर्वक प्रवृत्ति अथवा धार्मिक कार्योंमें
अनुत्साह ।
प्रशम :–अनन्तानुबन्धी कषायके अन्तपूर्वक शेष कषायोंका अंशतः
मन्द होना सो प्रशम । (पंचाध्यायी भाग २, गाथा ४२८)
मद :–अहंकार, घमण्ड, अभिमान ।
भावकर्म :–मिथ्यात्व, राग-द्वेषादि जीवके मलिन भाव ।
मिथ्यादृष्टि :–तत्त्वोंकी विपरीत श्रद्धा करनेवाले ।
लोकमूढ़ता :–धर्म समझकर जलाशयमें स्नान करना तथा रेत,
पत्थर आदिका ढेर बनाना–आदि कार्य ।
विशेष धर्म :–जो धर्म अमुक विशिष्ट द्रव्यमें रहे, उसे विशेष धर्म
कहते हैं ।
शुद्धोपयोग :–शुभ और अशुभ राग-द्वेषकी परिणतिसे रहित
सम्यग्दर्शन-ज्ञान सहित चारित्रकी स्थिरता ।
सामान्य गुण :–सर्व द्रव्योंमें समानतासे विद्यमान गुणोंको सामान्य
गुण कहते हैं ।
सामान्य :–प्रत्येक वस्तुमें त्रैकालिक द्रव्य-गुणरूप, अभेद एकरूप
भावको सामान्य कहते हैं ।
सिद्ध :–आठ गुणों सहित तथा आठ कर्मों एवं शरीररहित
परमेष्ठी । [व्यवहारसे मुख्य आठ गुण और निश्चयसे अनन्त
गुण प्रत्येक सिद्ध परमात्मामें हैं । ]
९० ][ छहढाला