Chha Dhala (Hindi). Antar-pradarshan.

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संवेग :–संसारसे भय होना और धर्म तथा धर्मके फलमें परम
उत्साह होना । साधर्मी और पंचपरमेष्ठीमें प्रीतिको भी संवेग
कहते हैं ।
निर्वेद :–संसार, शरीर और भोगोंमें सम्यक् प्रकारसे उदासीनता
अर्थात् वैराग्य ।
अन्तर-प्रदर्शन
(१) जीवके मोह-राग-द्वेषरूप परिणाम वह भाव-आस्रव है और
उस परिणाममें स्निग्धता वह भावबन्ध है ।
(२) अनायतनमें तो कुदेवादिकी प्रशंसा की जाती है; किन्तु
मूढ़तामें तो उनकी सेवा, पूजा और विनय करते हैं ।
(३) माताके वंशको जाति और पिताके वंशको कुल कहा जाता
है ।
(४) धर्मद्रव्य तो छह द्रव्योंमेंसे एक द्रव्य है और धर्म वह वस्तुका
स्वभाव अथवा गुण है ।
(५) निश्चयनय वस्तुके यथार्थ स्वरूपको बतलाता है । व्यवहारनय
स्वद्रव्य-परद्रव्यका अथवा उनके भावोंका अथवा कारण-
कार्यादिकका किसीको किसीमें मिलाकर निरूपण करता है ।
ऐसे ही श्रद्धानसे मिथ्यात्व है; इसलिये उसका त्याग करना
चाहिये ।
(मोक्षमार्ग प्रकाशक अध्याय.७)
(६) निकल ( –शरीर रहित) परमात्मा आठों कर्मोंसे रहित हैं
और सकल (–शरीर सहित) परमात्माको चार अघातिकर्म
होते हैं ।
तीसरी ढाल ][ ९१