सम्यग्ज्ञानके भेद, परोक्ष और देशप्रत्यक्षके लक्षण
तास भेद दो हैं, परोक्ष परतछि तिन मांहीं ।
मति श्रुत दोय परोक्ष, अक्ष – मनतैं उपजाहीं ।।
अवधिज्ञान मनपर्जय दो हैं देश-प्रतच्छा ।
द्रव्य क्षेत्र परिमाण लिये जानै जिय स्वच्छा ।।३।।
अन्वयार्थ : – (तास) उस सम्यग्ज्ञानके (परोक्ष) परोक्ष
और (परतछि) प्रत्यक्ष (दो) दो (भेद हैं) भेद हैं; (तिन मांहीं)
उनमें (मति श्रुत) मतिज्ञान और श्रुतज्ञान (दोय) यह दोनों
(परोक्ष) परोक्षज्ञान हैं । [क्योंकि वे ] (अक्ष मनतैं) इन्द्रियों तथा
मनके निमित्तसे (उपजाहीं) उत्पन्न होते हैं । (अवधिज्ञान)
अवधिज्ञान और (मनपर्जय) मनःपर्ययज्ञान (दो) यह दोनों ज्ञान
(देश-प्रतच्छा) देशप्रत्यक्ष (हैं) हैं; [क्योंकि इन ज्ञानोंसे ] (जिय)
जीव (द्रव्य क्षेत्र परिमाण) द्रव्य और क्षेत्रकी मर्यादा (लिये) लेकर
(स्वच्छा) स्पष्ट (जानै) जानता है ।
भावार्थ : – इस सम्यग्ज्ञानके दो भेद हैं–(१) प्रत्यक्ष और
(२) परोक्ष; उनमें मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्षज्ञान१ हैं; क्योंकि
वे दोनों ज्ञान इन्द्रियों तथा मनके निमित्तसे वस्तुको अस्पष्ट जानते
हैं । सम्यक्मति-श्रुतज्ञान स्वानुभवकालमें प्रत्यक्ष होते हैं; उनमें
इन्द्रिय और मन निमित्त नहीं हैं । अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान
देशप्रत्यक्ष२ हैं; क्योंकि जीव इन दो ज्ञानोंसे रूपी द्रव्यको द्रव्य,
१. जो ज्ञान इन्द्रियों तथा मनके निमित्तसे वस्तुको अस्पष्ट जानता है,
उसे परोक्षज्ञान कहते हैं ।
२. जो ज्ञान रूपी वस्तुको द्रव्य-क्षेत्र-काल और भावकी मर्यादा
पूर्वक स्पष्ट जानता है, उसे देशप्रत्यक्ष कहते हैं ।
चौथी ढाल ][ ९७